Book Title: Kriyakosha
Author(s): Kishansinh Kavi
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 307
________________ २८० श्री कवि किशनसिंह विरचित कवल चंद्रायण व्रत दोहा वरत कवल चंद्रायणा, बारह मास मझार । एक महीनामें करै, एक बार चित धार ॥ १७४९ ॥ चौपाई करहि अमावसको उपवास, पीछै लै इक चढता ग्रास । पडिवा दिवस ग्रास इक लीन, दोयज दोय तीज दिन तीन ॥ १७५०॥ चौथ चार पण पांचै सही, छट्ठी छह सातै सत लही । आठै आठ नवमि नो टेक, दशमी दस ग्यारसि दस एक || १७५१|| बारसि बारह तेरसि जान, तेरसि चौदस चौदह ठान । पून्यो दिवस लेई दस पांच, सुकल पक्षकी ए विधि सांच || १७५२॥ कृष्ण पक्षकी पडिवा जास, चौदह ग्रास तणौ परगास । दोयज तेरह बारह तीज, चौथ ग्यार पंचमी दस लीज || १७५३॥ छह नव सातै आठ बखाण, आठै सात नवमि छह जाण । दसमी पांच ग्यारसी चार, बारसि तिहुं तेरसि दुय धार ॥१७५४॥ चौदस दिनहि ग्रास इक जाण, मावस दिवस पारणौ ठाण । एक मासको व्रत है एह, ग्रास लीजिये तिम सुणि लेह ॥ १७५५॥ कवल चान्द्रायण व्रत वर्षके बारह महीनोंमेंसे किसी भी एक माहमें यह कवल चान्द्रायण व्रत एक बार किया जाता है ।।१७४९।। उसकी विधि इस प्रकार है- अमावस्याका उपवास करे, पश्चात् शुक्ल पक्षमें एक एक ग्रास बढाता हुआ आहार करे अर्थात् पडिवाको एक ग्रास, द्वितीयाको दो ग्रास, तृतीयाको तीन ग्रास, चतुर्थीको चार ग्रास, पंचमीको पाँच ग्रास, षष्ठीको छह ग्रास, सप्तमीको सात, अष्टमीको आठ, नवमीको नौ, दशमीको दश, एकादशीको ग्यारह, द्वादशीको बारह, त्रयोदशीको तेरह, चतुर्दशीको चौदह और पूर्णिमाको पन्द्रह ग्रासका आहार करे। यह शुक्ल पक्षकी विधि है ।। १७५०-१७५१।।। कृष्ण पक्षकी विधि इस प्रकार है- पडिवासे लेकर प्रतिदिन एक एक ग्रास कम करता जावे अर्थात् पडिवाको चौदह, द्वितीयाको तेरह, तृतीयाको बारह, चतुर्थीको ग्यारह, पंचमीको दश, षष्ठीको नौ, सप्तमीको आठ, अष्टमीको सात, नवमीको छह, दशमीको पाँच, एकादशीको चार, द्वादशीको तीन, त्रयोदशीको दो और चतुर्दशीको एक ग्रासका आहार करे, पश्चात् अमावस्याको पारणा करे। यह व्रत एक माहका है। अब ग्रास लेनेकी विधि सुनिये ।।१७५२-१७५५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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