Book Title: Kriyakosha
Author(s): Kishansinh Kavi
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
View full book text
________________
२९४
श्री कवि किशनसिंह विरचित
तपकल्याणक व्रत
पद्धरी छन्द
नमिनाथ दशमि आसाढ श्याम, सावण सुदि छठ तप नेमिनाथ | कातिक वदि तेरस पदम धीर, मगसिर वदि दशमी महावीर || १८३६॥
सुदि एकै दीक्षा पुहुपदन्त, दशमी दिन अरजिन तप महन्त । जिन मल्लि तजो ग्यारसि सुगेह, सुदि पून्यों संभव तप गनेह || १८३७||
चन्द्रप्रभ ग्यारस कृष्ण पौष, ग्यारसि पारस तप ऋद्धि मोख । सीतल जिन वदि द्वादसीय माह, सुदि चौथ विमल तप लियहु नाह ॥ १८३८|| नवमी दिन दीक्षा अजित देव, बारस अभिनन्दन सुतप भेव । तेरसि जिन धर्म तपो प्रशंस, फागुण वदि ग्यारसि श्री श्रेयांस ॥ १८३९॥ प्रभु वासुपूज्य चौदस सुजान, वदि चैतर नवमी रिसहमान । मुनिसुव्रत समि विशाख श्याम, सुदि पडिवा कुंथु जिनेस नाम || १८४० ॥ सित नवमि लियो तप सुमतिवीर, जिन शांति जेठ वदि चौथ धीर । वदि बारसि तप जिनवर अनंत, बारस सुपार्श्व सित जेठ सन्त ॥१८४१ ॥ दोहा
तप कल्याणकको कथन, उत्तर पुराणह मांहि । काढिकियो अब ज्ञानको, सुनिहु चित इक ठांहि || १८४२॥
तपकल्याणक की तिथियाँ- आषाढ़ वदी दशमी नमिनाथकी, श्रावण सुदी षष्ठी नेमिनाथकी, कार्तिक वदी त्रयोदशी पद्मप्रभकी, मगसिर वदी दशमी महावीरकी, मगसिर सुदी पडिवा पुष्पदन्तकी, मगसिर सुदी दशमी अरनाथकी, मगसिर सुदी एकादशी मल्लिनाथकी, मगसिर सुदी पूर्णिमा संभवनाथकी, पौष कृष्ण द्वादशी चन्द्रप्रभकी, पौष वदी एकादशी पार्श्वनाथकी, पौष वदी द्वादशी शीतलनाथकी, माघ सुदी चतुर्थी विमलनाथकी, माघ सुदी नवमी अजितनाथकी, माघ सुदी द्वादशी अभिनन्दननाथकी, माघ सुदी त्रयोदशी धर्मनाथकी, फागुन वदी एकादशी श्रेयांसनाथकी, फागुन वदी चतुर्दशी वासुपूज्यकी, चैत्र वदी नवमी ऋषभनाथकी, वैशाख वदी दशमी मुनिसुव्रतनाथकी, वैशाख सुदी पडिवा कुन्थुनाथकी, वैशाख सुदी नवमी सुमतिनाथकी, जेठ वदी चतुर्थी शांतिनाथकी, जेठ वदी द्वादशी अनन्तनाथकी और जेठ सुदी द्वादशी सुपार्श्वनाथकी तप कल्याणक तिथि है ।।१८३६-१८४१।।
यह तप कल्याणकका वर्णन उत्तरपुराणसे लेकर किया है । अब ज्ञान कल्याणकका वर्णन करते हैं सो चित्तको स्थिर कर सुनो ।। १८४२॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348