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श्री कवि किशनसिंह विरचित
वसु बीस साधु भनि पहुपांजलि गनि सिवकुमार बेला कहियं, चौबीस तीर्थङ्कर बेला व्रतधर पूज पुरंदर विधि लहियं ॥ १९०७॥ कोकिल पाँचे भनि नक्षत्र रोहिणी चंद्रायण निर्जर पाँचै, पन मेरु पंकति विमान पंकति रुकमणि व्रत पल्यजु साँचै करमहि निरजरिणी रविव्रत करनी करमचूर अनथमिय गनी, लघु वृद्ध कल्यानक छह निरवानं तीर्थंकर चौबीस भनी ॥। १९०८ ॥
३०८
छप्पय
कथाकोष महि कहे एक सौ आठ वरत पर, व्रत पचहत्तर इहां कह्यो जिस पाठ लहो वर; प्रोषध तिथि विधि असन कथा अनुसार बखानी, ताही सुनि भवि एहु करहु भवि उत्तम प्रानी; बाकी जु वरतको कथन जो सुनत होइ हुल्लास चित ।
व्रत कथाकोष माहे सकल करि त्रिशुद्ध सुन लेहु मित ॥ १९०९ ॥ छन्द त्रिभंगी
धरमनि विसतरनी पाप कतरनी सुभ गति करनी दुख हरनी । किरिया विधि वरनी असुभ विहरनी शिव घर धरनी नीसरनी ॥ १९१०॥
आचार्यके ३६ गुण, उपाध्यायके २५ गुण और साधुके २८ गुण, पुष्पांजलि, शिवकुमारका बेला, चौबीस तीर्थंकर बेला व्रत, जिनपूजा पुरन्दर व्रत, कोकिला पंचमी व्रत, नक्षत्र रोहिणी व्रत, कवल चान्द्रायण व्रत, निर्जरा पंचमी व्रत, पंच मेरु पंक्ति व्रत, विमान पंक्ति व्रत, रुक्मिणी व्रत, पल्य विधान व्रत, कर्मनिर्जरणी पंचमी व्रत, रविव्रत, कर्मचूर व्रत, अनस्तमित व्रत, पंच कल्याणक व्रत और लघु पंच कल्याणक व्रत, इन सब व्रतोंका वर्णन ऊपर किया गया है । यद्यपि कथा कोषमें एक सौ आठ व्रत कहे गये हैं परन्तु यहाँ हमें जैसा पाठ मिला उसके अनुसार पचहत्तर व्रतोंका वर्णन किया गया हैं । पौषधकी तिथि तथा विधि, तथा पारणाका वर्णन व्रत कथाके अनुसार किया गया है उसे सुनकर हे उत्तम भव्य प्राणियों ! श्रद्धापूर्वक ये व्रत करो । शेष व्रतोंका कथन सुनते समय हृदयमें बड़ा हर्ष उत्पन्न होता है इसलिये हे भव्यजनों ! व्रत कथा कोषमें जो समस्त व्रतोंका वर्णन किया गया है उसे मन वचन कायकी शुद्धतापूर्वक सुनो ।।१९०३-१९०९।।
ग्रंथकर्ता कहते हैं कि जो क्रियाकी विधि धर्मका विस्तार करनेवाली है, पापको कतरनेवाली है, शुभगतिको करनेवाली है दुःखको दूर करनेवाली है, अशुभको हरनेवाली है, और मोक्षमहलकी भूमि पर चढ़नेके लिये नसैनी स्वरूप है, उस क्रिया विधिका मैंने यहाँ वर्णन किया है॥१९१०॥
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