Book Title: Kriyakosha
Author(s): Kishansinh Kavi
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 340
________________ क्रियाकोष शतिभिषा रवि धृतनाम जोग कुम्भ राशि, सिंघको दिनेस मुहूरत अति सार है; ढुंढाहर देस जान बसे सांगानेर थान, जैसिंह सवाई महाराज नीतिधार है, ताके राजसमै परिपूरण की इह कथा भव्यनिको हृदय हुलास देनहार है ॥१९२८॥ दोहा दोइसै चौवन है पैतीस इकतीसा, मरहठा पांच चाल छः सौ बीस ठाने है, सातसय बाणवे सु चौपाई छबीसा छप्पै पदरी पैंतीस तेरा सोरठा बखाने है; अडिल्ल बहत्तर नाराच आठ गीता दस कुण्डलिया तीन छह तेईसा प्रमानै है, द्रुतविलम्बित चार आठ है भुजंगी तीन त्रोटक त्रिभंगी नव छन्द ऐते आने है || १९२९|| अडिल्ल छन्द क्रियाकोस मध्य छन्द जाति सत्रह भये, अरु बारह उक्तं च अवर सूत्रनतें लये; गाथा दो दश श्लोक चाहिए जहँ जिसौ, तहाँ साखि दै कथन कियो सोभै तिसौ || १९३०|| नक्षत्र, धृति योग, कुम्भ राशि और सिंहके सूर्य, इस प्रकार शुभ मुहूर्तमें ढुंढाहर देशके सांगानेर शहरमें जयसिंह सवाई महाराजके राज्यमें रहते हुए इस कथाको पूर्ण किया है। यह कथा भव्यजीवोंके हृदयमें उल्लासको देनेवाली है || १९२८ ॥ ३१३ इस कथामें दो सौ चौवन दोहे हैं, पैंतीस सवैया इकतीसा हैं, पाँच मरहठा हैं, छह सौ बीस चाल छन्द है, सात सौ बानवे (७९२) चौपाई हैं, छव्वीस छप्पय हैं, पैंतीस पद्धरी हैं, तेरह सोरठे हैं, बहत्तर अडिल्ल हैं, आठ नाराच हैं, दश गीता हैं, तीन कुंडलिया हैं, छह सवैया तेईसा हैं, चार द्रुतविलंबित हैं, आठ भुजंगप्रयात हैं, तीन त्रोटक हैं और नौ त्रिभंगी हैं ।। १९२९ ।। Jain Education International क्रियाकोष ग्रंथमें सत्रह जातिके छन्द हैं और बारह उक्तंच है जो दूसरे ग्रंथोंसे लिये गये हैं । उनमें दो गाथा और दश श्लोक हैं । जहाँ जिसकी आवश्यकता थी वहाँ उसकी साक्षीके लिये उक्तंचका कथन किया गया है । उक्तंच यथास्थान सुशोभित हैं || १९३०|| For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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