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श्री कवि किशनसिंह विरचित
तीर्थंकरोंका बेला
दोहा ऋषभ आदि तीर्थेशके, बेला बीस रु चार । आठै चौदस कीजिये, अंतर भूर न पार ॥१७३८॥
चौपाई सातै आठमि बेलो ठान, नौमी दिवस पारणों जान । तेरसि चौदसि दुय उपवास, मावस पूण्यो भोजन तास ॥१७३९॥ अब पारणाकी विधि जिसी, सुणी वखाणत हों मैं तिसी । बेला प्रथम पारणे एह, तीन आंजली शर्बत लेह ॥१७४०॥ अरु तेईस पारणा जान, तीन आंजली दूध बखान । इम बेला कीजे चौबीस, तिन तै फल अति लहै गरीस ॥१७४१॥
जिनपूजा पुरंदर व्रत
गीता छंद अब वरत जिनपूजा पुरंदर, सुनहु भवि चित्त लायकै; बारा महीना मांझ कोई मास इक हित दायकै । . ताकी सुकल पडिवा थकी ले अष्टमी लौं कीजिये, प्रोषध इकंतर आठ दिनमें, पूज जिन शुभ लीजिये ॥१७४२॥
दोहा
वरत यह दिन आठको, 'बार एक करि लेह । मन वच तन तिरकाल जिन, पूजै सुरपद देह ॥१७४३॥
तीर्थंकरोंका बेला ऋषभदेव आदि तीर्थंकरोंके चौबीस बेला होते हैं जो अष्टमी और चतुर्दशीके किये जाते हैं। इस व्रतमें अन्तर नहीं डालना चाहिये ॥१७३८॥ बेलाकी विधि इस प्रकार है-सप्तमी और अष्टमीका बेला कर नवमीका पारणा करना चाहिये । पश्चात् त्रयोदशी और चतुर्दशीका उपवास कर अमावस या पूर्णिमाको भोजन करना चाहिये ॥१७३९॥ अब पारणाकी विधि, मैंने जैसी सुनी है, वैसी कहता हूँ। प्रथम बेलाके पारणेके दिन तीन अंजलि प्रमाण शर्बत लेना चाहिये और शेष तेईस पारणाके दिन तीन अंजलि प्रमाण दूध लेना चाहिये । इस प्रकार चौबीस बेला करना चाहिये, इससे श्रेष्ठ फलकी प्राप्ति होती है ॥१७४०-१७४१॥
जिनपूजा पुरंदर व्रत हे भव्यजनों! अब चित्त लगाकर 'जिनपूजा पुरंदर व्रत'का वर्णन सुनो। वर्षके बारह महीनोंमें कोई एक हितदायक महीना निश्चित कर लीजिये। उसके शुक्ल पक्षकी प्रतिपदासे लेकर अष्टमी तक आठ दिन लगातार प्रोषध कर जिनेन्द्र भगवानकी पूजा करो। यह व्रत आठ
१. एक चित्त कर लेह स. न.
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