Book Title: Kriyakosha
Author(s): Kishansinh Kavi
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 316
________________ २८९ क्रियाकोष कर्मनिर्जरणी व्रत सवैया इकतीसा दरसणके निमति चौदसि आसाढ सुदि, ___ सावणकी चौदस उपास ज्ञान कीजिये; भादों सुदि चौदसको प्रोषध चारित्र केरो, ___ तप जोग चौदसि असौज सित लीजिये। एई चार प्रोषध वरष मांहि विधि सेती, कर्म निर्जरनी सुवरत सुन लीजिये, धनश्रीय सेठ सुता करि सुरपद पायों, अजों भावि भवि करिवेको चित दीजिये ॥१८०६॥ आदित्यवार व्रत दोहा सुणो वरत आदित्यकी, विधि भाषी है जेम । कथा प्रमाणसु कहत हों, दायक सब विधि क्षेम ॥१८०७॥ चौपाई प्रथम असाढ अठाई मांही, दीत वार वास एक कराहि । सांवण मांहि करे पुनि चार, चार वास कर भादों मझार ॥१८०८॥ कर्म निर्जरणी व्रत सम्यग्दर्शनके निमित्त आषाढ़ सुद चतुर्दशी, सम्यग्ज्ञानके निमित्त श्रावण सुद चतुर्दशी, सम्यक् चारित्रके निमित्त भादों सुद चतुर्दशी और सम्यक् तपके निमित्त आसौज सुद चतुर्दशी, इन चार दिनोंके चार उपवास प्रति वर्ष करनेसे कर्म निर्जरणी व्रत होता है। किसी समय धनश्री नामक सेठकी पुत्रीने इस व्रतको करके देवपद प्राप्त किया था। हे भव्यजीवों ! आज भी इस व्रतको करनेके लिये अपना चित्त लगाइये ॥१८०६॥ आदित्यवार (रविवार) व्रत अब आदित्यवार (रविवार) व्रतकी विधि जिस प्रकार आगममें कही गई है उसे सुनो। रविवार व्रत कथाके अनुसार उसकी सर्व क्षेमकारी विधि कहता हूँ॥१८०७।। आषाढ़ मासके अष्टाह्निका पर्वमें अर्थात् अष्टमीसे लेकर पूर्णिमाके बीचमें जो रविवार पड़े वह प्रथम रविवार है उसके पश्चात् श्रावणके चार और भाद्रपदके चार इस प्रकार नौ रविवारोंमें यह व्रत पूर्ण होता है। व्रतके दिनोंमें मद्य, मांस, मधु व मैथुन इन चार मकारोंका विचार भी नहीं करना चाहिये। १. सुग्यान काज ग. २ प्रथम असाढ सेत पख जोय, दीत वार व्रत एक जु होय। स० न०; प्रथम एक माहे आषाढ, आठाई पून्यू बिचि आठ। ख० ग० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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