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श्री कवि किशनसिंह विरचित
दोहा निमित तास चित पूजसी, अधिका जे द्रव्य लाय । कोटि जनम करतो रहो, ज्यों को त्यों ही थाय ॥१३८३॥ ग्रहकी शांति निमित्त जो, विकलप छूटै नाहि । भद्रबाहु कृत श्लोकमें, कहो तेम करवाहि ॥१३८४॥
अडिल्ल नमसकार करि तीन जगतगुरु पद लही, सदगुरु मुखौं कथन सुण्यो जो है सही; लोक सकल सुख निमित कह्यो शुभ बैनको, नवग्रह शांतिक वर्णन सुनिये चैनको ॥१३८५॥
नाराच छंद जिनेन्द्र देव पाद सेव खेचरीय लाय है, निमित्त तासु पूजि जैन अष्ट द्रव्य लाय है; सुनीर गंध तंदुलै प्रसून चारु नेवजं, सुदीप धूप औ फलं अनर्घ सिद्धदं भजे ॥१३८६॥
चाल छंद सूरज करूर जब थाय, पदमप्रभ पूजै पाय ।
श्री चन्द्रप्रभ पूजा तै, शशि दोष न लागै तातै ॥१३८७॥ करते हैं कि जीव अपने कर्मोंका ही फल प्राप्त करते हैं ॥१३८२॥ ग्रन्थकार कहते हैं कि निमित्त उसके मनोरथको पूर्ण करते हैं जिसके पुण्यरूपी द्रव्य अधिक होता है। इसके बिना कोटि जन्म तक निमित्त जुटाते रहो फिर भी द्रव्य उतना ही रहता है । ग्रहशांतिके निमित्त यदि विकल्प न छूटे तो भद्रबाहु कृत श्लोकमें जैसी विधि कही गई हैं वैसी करा लीजिये ॥१३८३-१३८४॥
सद्गुरुको नमस्कार करके ही तीन जगतके जीव गुरुपदको प्राप्त होते हैं। सद्गुरुके मुखसे जो बात सुनते हैं वही सत्य होती है। उन्होंने समस्त लोगोंके सुखके लिये जो शुभ वचन कहे हैं उन्हींके अनुसार नवग्रह शान्तिका वर्णन सुनो जिससे सुखकी प्राप्ति होगी ॥१३८५।।
जिनेन्द्रदेवके चरणोंकी सेवा विद्याधर लोग करते हैं, उनकी पूजाके निमित्त वे अष्टद्रव्य लाते हैं, उत्तम जल, चन्दन, तन्दुल, पुष्प, मनोहर नैवेद्य, दीप, धूप और फल इन अष्टद्रव्योंसे वे अनर्घ (सिद्ध) पदको देनेवाले जिनेन्द्र देवकी पूजा करते हैं ॥१३८६॥
जब सूर्य ग्रह क्रूर हो तब पद्मप्रभ भगवानकी पूजा करें। श्री चंद्रप्रभ भगवानकी पूजासे चन्द्र ग्रहका दोष दूर होता है ।।१३८७॥ वासुपूज्य भगवानके चरणोंकी पूजासे मंगल ग्रहजन्य दुःख दूर भागता है। जब बुध ग्रहकी क्रूरता हो तब निम्नलिखित आठ तीर्थंकरोंकी पूजामें मन
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