Book Title: Kriyakosha
Author(s): Kishansinh Kavi
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 294
________________ क्रियाकोष २६७ लघु मुक्तावली व्रत चाल छन्द मुक्तावलि व्रत लघु एम, करिहि भविहि धरि प्रेम । भादौं सुदि सातै जाणो, पहिलो उपवास बखाणो ॥१६८५॥ आसोज किसन छठि तेरस, उजियारी करिये ग्यारस ।। कातिक वदि बारस ताम, सुदि तीज रु ग्यारस ठाम ॥१६८६॥ मगसिर वदि ग्यारसि जानो, प्रोषध सुदि तीजहि ठानो । नव नव प्रति वरष गहीजै, प्रोषध इक असी करीजै ॥१६८७॥ पूरो नव वरष मझारी, जुत शील करहु नर नारी । तातें फल पावै मोटो, मिटिहै विधि उदय जु खोटो ॥१६८८॥ मुकुटसप्तमी व्रत दोहा श्रावण सुदि सप्तमी दिवस, प्रोषधको नर वाम । सात वरष तक कीजिये, मुकुट सप्तमी नाम ॥१६८९॥ नंदीश्वर पंक्ति व्रत दोहा नंदीश्वर पंकति वरत, सुनहु भविक चित लाय । किये पुण्य अति ऊपजै, भव आताप मिटाय ॥१६९०॥ लघु मुक्तावली व्रत लघु मुक्तावली व्रतकी विधि इस प्रकार है। हे भव्यजीवों ! उसे सुनकर प्रेमसे धारण करो। भादों सुदी सप्तमीके दिन इसका पहला उपवास कहा गया है पश्चात् आसोज वदी षष्ठी, त्रयोदशी, आसोज सुदी एकादशी, कार्तिक वदी द्वादशी, कार्तिक सुदी तृतीया और एकादशी, मगसिर वदी एकादशी तथा मगसिर सुदी तृतीयाका उपवास करना चाहिये। इस तरह एक वर्षके नौ और नौ वर्षके इक्यासी उपवास होते हैं। नौ वर्षमें यह व्रत पूर्ण होता है। जो नरनारी शील सहित इस व्रतका पालन करते हैं वे बहुत भारी फल प्राप्त करते हैं और अशुभ कर्मोंका उदय दूर हो जाता है ॥१६८५-१६८८॥ मुकुट सप्तमी व्रत जो स्त्री पुरुष श्रावण सुदी सप्तमीके दिन सात वर्ष तक उपवास करते हैं उनके इस व्रतका नाम मुकुट सप्तमी व्रत है ॥१६८९॥ । नन्दीश्वर पंक्ति व्रत हे भव्यजीवों ! अब मन लगाकर उस नन्दीश्वर पंक्ति व्रतका वर्णन सुनो जिसके करनेसे अतिशय पुण्य उत्पन्न होता है तथा संसारका संताप मिट जाता है॥१६९०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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