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श्री कवि किशनसिंह विरचित
रत्नावली व्रत
चाल छन्द
तनावलि व्रत इम करिये, प्रोषध सुदि तीजहि धरिये । पंचम अष्टम उपवास, सित पक्ष तिहु प्रोषध तास ॥१६७९॥ दोयज पंचम अँधियारी, आठ प्रोषध सुखकारी । इक मास माहि छह जानो, वरस सतरि दुय ठानो || १६८० ।।
उद्यापन सकति समान, करिके तजिये मतिमान । दृग जुत धरि शील धरीजै, तातै उत्तम फल लीजै ॥ १६८१॥ कनकावली व्रत
चाल छन्द
कनकावलि व्रत सुण जैसे, आगम भाष्यो सुणि तैसे । सितपक्ष थकी उपवास, करिये विधि सुनिये तास ॥ १६८२।। प्रोषध सित पडिवा कीजै, पुनि वास पंचमी लीजै । सुदि दशमी वदि दोयज ही, वदि छठ बारस व्रत सजही || १६८३॥ छह वास मास इकमाहीं, करिये भवि भाव धराहीं । उपवास बहत्तर जास, इक वरस मध्य कर तास ॥१६८४ ॥
रत्नावली व्रत
रत्नावली व्रतको इस प्रकार करना चाहिये । शुक्ल पक्षकी तृतीयासे व्रतका प्रारंभ होता है अतः शुक्ल पक्ष तृतीया, पंचमी और अष्टमीके तीन उपवास तथा कृष्ण पक्षमें द्वितीया, पंचमी और अष्टमीके तीन उपवास इस तरह एक माहमें छह और सब मिलाकर एक वर्षमें बहत्तर उपवास करना चाहिये । शक्तिके अनुसार उद्यापन कर व्रतका समापन करना चाहिये । व्रतके दिनोंमें सम्यग्दर्शनके साथ शील व्रतका भी पालन करना चाहिये । इससे उत्तम फलकी प्राप्ति होती है ।।१६७९ - १६८१।।
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कनकावली व्रत
कनकावली व्रतका वर्णन जैसा आगममें कहा गया है वैसा कहता हूँ उसे सुनो। इस व्रत उपवास शुक्ल पक्षसे प्रारंभ होते हैं, उनकी विधि इस प्रकार हैं ।। १६८२ ॥ शुक्ल पक्षमें पडिवा, पंचमी और दशमीके उपवास तथा कृष्ण पक्षमें द्वितीया, षष्ठी और द्वादशीके उपवास इस तरह एक माह में छह और एक वर्षमें बहत्तर उपवास होते हैं । हे भव्यजीवों ! भावसहित इस व्रतको धारण करो ।। १६८३-१६८४॥
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