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अतिशयोंको लक्ष्य कर चौदह चतुर्दशी, अनन्त चतुष्टयको लक्ष्य कर चार चतुर्थी, आठ प्रातिहार्योंको लक्ष्य कर सोलह अष्टमी, पाँच ज्ञानोंको लक्ष्य कर पाँच पंचमी और छह षष्ठी, इस प्रकार सब मिलाकर पैंसठ प्रोषध करनेसे यह व्रत पूर्ण होता है । इस व्रतका बहुत भारी फल होता है ।।१७१२-१७१३।
क्रियाकोष
अडिल्ल छन्द
दस दसमी जनमतके अतिशय दस तणी, फिरि दस केवलज्ञान ऊपजै दस भणी; चौदसी चौदह अतिशय देवन कृत कही, चार चतुष्टय चौथ चार इह विधि गही ॥ १७१२॥ षोडश आठै प्रातिहार्य वसु की गणी, ज्ञान पाँचकी पाँचे पाँच कही भणी; अरु षष्ठी छह लही सबै प्रोषध सुनो, पाँच अधिक भवि साठ कीए फल बहु गुणो || १७१३ || बारासै चौंतीसीका व्रत अडिल्ल छंद
* दोयज
पांचे आठै ग्यारस चउदसी, इनके प्रोषध करै सकल अघ जै नसी; प्रोषध सब बारह सौ अरु चौतीस ही, नाम वरत बारासै चौतीसी कही ||१७१४||
बारह सौ चौंतीसा व्रत
द्वितीया, पंचमी, अष्टमी, एकादशी और चतुर्दशीके दिन प्रोषध करनेसे समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं । इस व्रतके प्रोषध सब मिलकर बारह सौ चौंतीस होते हैं इसलिये इस व्रतका नाम 'बारह सौ चौंतीसा' प्रसिद्ध हो गया है ।। १७१४॥
विशेष
-:
मूलमें जो पाठ है वह अपूर्ण जान पड़ता है । अन्यत्र पुस्तकोंमें उपलब्ध पाठ टिप्पणीमें दिया है उसके अनुसार व्रतकी विधि इस प्रकार है
२७३
因
द्वितीया, पंचमी, अष्टमी, द्वादशी और चतुर्दशी इनके प्रोषध (उपवास) करे। ये उपवास पापों का नाश करनेवाले हैं। एक माहके दोनों पक्षोंके दश उपवास हुए। एक वर्षके सब मिला
* यह पाठ खंडित जान पड़ता है। अन्यत्र पूरा पाठ इस प्रकार है इसीमें छन्द १७१४की संगति बैठती है अडिल्ल- दोयज पांचै आठे बारस चौदसी, इनके प्रोषध करे सकल अघ जो नशी ।
दश प्रोषध इक मासमें द्वय पखके भये, एक वरषके इकसै बीस मिल सब ठये || पूरण है दश वर्ष सार्ध त्रय मासमें, ह्वै बारा सौ चौतीस प्रोषध जास में । सम्यक् चारित तनी भावना चित गहै, बारह सौ चौतीसा व्रत मुनिजन कहै ॥
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