Book Title: Kriyakosha
Author(s): Kishansinh Kavi
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 284
________________ क्रियाकोष नवकार पैंतीस व्रत चौपाई अपराजित मंत्र नवकार, अक्षर तसु पैंतीस विचार । करि उपवास वरण परमान, सातैं सात करो बुध मान ॥१६२२॥ पुनि चौदा चौदसि गनि सांच, पांचै तिथिके प्रोषध पांच । नवमी नव करिये भवि संत, सब प्रोषध पैंतीस गणंत ॥ १६२३॥ पैतीसी नवकार जु एह, जाप्य मंत्र नवकार जपेह । मन वच तन नर नारी करै, सुर नर सुख लहि शिवतिय वरै || १६२४॥ त्रेपन क्रिया व्रत चौपाई त्रेपन किरियाकी विधि जिसी, सुणिये बुध भाषी जिन तिसी । आठै आठ मूल गुण तणी, पांच पांच अणुव्रत भणी ॥ १६२५॥ तीन तीज गुणव्रतकी धार, शिक्षाव्रतकी चौथ जु चार । तप बारहकी बारसि जान, तिनके प्रोषध बारह ठान ॥१६२६॥ २५७ सामि भावकी पडिवा एक, ग्यारसि प्रतिमाकी दश एक । चौथ चार चहुं दानहि तणी, पडिवा एक जल - गालन भणी || १६२७॥ अणथमीय पडिवा अघ- रोध, तीनहुँ तीज चरण दृग बोध | ए त्रेपन प्रोषध जे करै, शील सहित तपको अनुसरै || १६२८॥ नवकार पैंतीस व्रत अपराजित मंत्र, नमस्कार मंत्र कहलाता है, इसके पैंतीस अक्षर होते हैं । इन्हें लक्ष्य कर एक वर्षमें सात सप्तमियोंके सात, चौदह चतुर्दशियोंके चौदह, पाँच पंचमियोंके पाँच और नौ नवमियोंके नौ, सब मिलाकर ३५ प्रोषध किये जाते हैं और नमस्कार मंत्रका जाप किया जाता है । जो नरनारी मन वचन कायसे इस व्रतको करते हैं वे सुरनरके सुख प्राप्त कर मुक्तिरमाका वरण करते हैं ।। १६२२-१६२४॥ त्रेपन क्रिया व्रत त्रेपन क्रिया व्रतकी विधि विद्वानोंने जैसी कही हैं उसे सुनिये। आठ मूलगुणोंकी आठ अष्टमी, पाँच अणुव्रतोंकी पाँच पंचमी, तीन गुणव्रतोंकी तीन तृतीया, चार शिक्षाव्रतोंकी चार चतुर्थी, द्वादश तपोंकी बारह द्वादशी, साम्यभावकी एक पडिवा, ग्यारह प्रतिमाओंकी ग्यारह एकादशी, चार दानकी चार चतुर्थी, जलगालनकी एक पडिवा, अनस्तमित ( अणथऊ ) व्रतकी एक पडिवा, सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्रकी तीन तृतीया, इस प्रकार इन त्रेपन तिथियोंमें जो नरनारी शील सहित प्रोषध करते हैं, तपश्चरण करते हैं वे देव और मनुष्य गतिके सुख भोगकर क्रमसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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