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श्री कवि किशनसिंह विरचित
करे असन इक बार व्रती इम व्रत सजै, पख बारह मरयाद षट्रसी व्रत भजै ॥१६०८॥
पाख्या व्रत
अडिल्ल लूण दीत, ससि हरी, मंगल मीठो हरै, घिरत बुद्ध, गुरु दूध, दही भृगु परिहरै; तेल तजे सनि इहै वरत पाख्या गहै, मरयादा जिम नेम धरे जिम निरवहै ॥१६०९॥ ज्ञान पचीसी उपवास
अडिल्ल प्रोषध चौदह चौदसिके विधिजुत करे, तैसे ग्यारा ग्यारसिके प्रोषध धरे; सब उपवास पचीस शीलव्रत जुत धरै, ज्ञानपचीसी वरत जिनागम इम कहै ॥१६१०॥
सुखकरण व्रत
अडिल्ल एक वास एकंत एक अनुक्रम करै, मास चार पख एक इकन्तर इम धरै; देव शास्त्र गुरु पूज सजै व्रत धरि सदा,
नाम तास सुखकरण, हरण दुख जिन वदा ॥१६११॥ क्रमसे एक एक रसका त्याग कर एकाशन करे। यह षट्रसी व्रत है इसकी मर्यादा बारह पक्षकी है॥१६०८॥
पाख्या व्रतका वर्णन रविवारको नमक, सोमवारको हरी, मंगलवारको मीठा, बुधवारको घृत, गुरुवारको दूध, शुक्रवारको दही और शनिवारको तेलका त्याग करे, यही पाख्या व्रत कहलाता है। मर्यादा अपने नियमके अनुसार है अर्थात् जितने समयका नियम लिया है उसका निर्वाह करे ॥१६०९॥
ज्ञान पच्चीसी उपवासका वर्णन जिनागममें ज्ञान पच्चीसी व्रतका स्वरूप ऐसा कहा गया है कि चौदह पूर्वोका लक्ष्य रखकर चौदह चतुर्दशीके १४ और ग्यारह अंगोंका लक्ष्य रखकर ग्यारह ग्यारसोंके ११, इस तरह पच्चीस उपवास करे तथा शीलव्रतका पालन करे ॥१६१०॥
सुखकरण व्रतका वर्णन । चार माह और एक पक्ष तक अनुक्रमसे एक उपवास और एक एकाशन करे तथा देवशास्त्र-गुरुकी पूजा साज-संगीतके साथ करे ऐसा यह सुखकरण तथा दुखहरण व्रत जिनेन्द्र भगवानने कहा है ॥१६११॥
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