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क्रियाकोष
चौपाई पूजा निमित्त स्नान आचरै, सो पूरव दिसिको मुख करै । धौत वस्त्र पहिरै तनि तबै, उत्तर दिसि मुख करिहैं जबै ॥१४३३॥
उक्तं च श्लोके स्नानं पूर्वामुखी भूय, प्रतीच्यां दन्तधावनम् । उदीच्यां श्वेतवस्त्राणि, पूजा पूर्वोत्तरामुखी ॥१४३४॥
___ चौपाई
पूरव उत्तर दिसि सुखकार, पूजक पुरुष करै मुख सार । जिन प्रतिमा पूरव जो होइ, पूजक उत्तर दिसिको जोइ॥१४३५॥ जो उत्तर प्रतिमा मुख ठाणि, तो पूरव मुख सेवक जाणि । श्री जिन चैत्यगेहमें एम, करै भविक पूजा धरि प्रेम ॥१४३६॥ जिनमंदिरमें प्रतिमा धाम, करै तास विधि सुनि अभिराम । घरमें पौलि प्रवेश करंत, वाम भाग दिसि रचिय महंत ॥१४३७।। मंदिर उपले खणकी मही, ऊँचो हाथ ओडि कर सही । जिनप्रतिमा पधिरावन गेह, परम विचित्र करै धरि नेह ॥१४३८॥ प्रतिमा मुख पूरव दिसि करै, अथवा उत्तर दिसि मुख धरै ।
पूजक तिलक करै नव जान, सो सुनि बुधजन कहूँ बखान ।।१४३९॥ पूजाके निमित्त जब स्नान करे तब पूर्व दिशाकी ओर मुख कर करे और शरीर पर जब धुले वस्त्र धारण करे तब उत्तर दिशाकी ओर मुख करे ॥१४३३।। जैसा कि श्लोकमें कहा है:
स्नान पूर्वमुखी होकर करे, दातौन पश्चिममुखी होकर करे, स्वच्छ वस्त्र उत्तरमुखी होकर पहने और पूजा पूर्व अथवा उत्तरमुखी होकर करे ॥१४३४॥
पूजा करनेवाला मनुष्य पूर्व या उत्तर दिशाकी ओर मुख कर पूजा करता है तो वह सुखकारक है। जिनप्रतिमाका मुख यदि पूर्वकी ओर है तो पूजा करनेवाले पुरुषका मुख उत्तर दिशाकी ओर हो। यदि प्रतिमा उत्तरमुखी विराजमान है तो पुजारीको पूर्वमुखी होकर पूजा करना चाहिये । भव्यजीव, जिनमंदिरमें इस विधिसे प्रीतिपूर्वक पूजा करे ॥१४३५-१४३६।। ___अब जिनमंदिरमें प्रतिमाका स्थान (वेदिका) किस प्रकार करे, इसकी उत्तम विधि सुनो। जिनमंदिरमें प्रवेश करनेका द्वार वाम भागकी ओर रक्खे अथवा कोई घरमें ही चैत्यालय रखना चाहे तो वाम भाग अपने आपके लिये रक्खे और दक्षिण भागमें चैत्यालय स्थापित करे। यदि ऊपरके खण्डमें प्रतिमा विराजमान करना है तो वेदिकाको एक हाथकी ऊँचाई देना चाहिये। प्रतिमा विराजमान करनेका जो घर है उसे प्रीतिपूर्वक अत्यन्त सुसज्जित करना चाहिये ॥१४३७ १४३८॥ प्रतिमाका मुख पूर्व या उत्तर दिशाकी ओर करना चाहिये। पूजा करनेवालेको नौ
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