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क्रियाकोष
तिय सेवै पीछे इह जाणि, परम विवेकी स्नानहि ठाणि । शयन जुदी सेज्या परि करै, इम निति ही किरिया अनुसरे || १४२०।। राति सुपनमें मदन दबाय, शुक्र खिरे कोऊ कारण पाय । कपडे दूरि डारि निरधार, जलतैं स्नान करै तिहि वार || १४२१ ॥ निसि सोवनको सेज्या- थान, पलंग करै दक्षिण सिरहान । अरु पश्चिम दिसहू सिर करै, उठत दुहुं दिसि निजर जु परै ॥१४२२॥
पूरव अरु उत्तर दुहुं जाणि, उत्तम उठिये हरषहि ठाणि । इह विधि क्रिया अहोनिसि करै, सो किरिया विधिको अनुसरै || १४२३| जाप्य पूजाकी विधिका कथन
चौपाई
जाप करण पूजाकी बार, जो भाषी किरिया निरधार । ताको वरणन भवि सुन लेह, श्लोकनिमें वरणी है जेह || १४२४॥ पूरव दिसि मुख करि बुधिवान, जाप करै मन वच तन जानि । जो पूरव कदाचि टर जाय, उत्तर सन्मुख करि चित लाय || १४२५॥ दक्षिण पश्चिम दुहु दिसि जथा, जाप करन वरजी सरवथा । तीन श्वास उसास मझारि, जाप करै नवकार विचारी ॥ १४२६॥ करते हैं । इस क्रियाका नित्य ही पालन करना चाहिये || १४२० ।। रात्रिमें सोते समय कामावेशसे यदि शुक्रका क्षरण हुआ हो तो उसी समय कपड़े अलग कर जलसे स्नान करना चाहिये । रात्रिके समय शयनागारमें पलंगका शिरहाना दक्षिण अथवा पश्चिमकी ओर करना चाहिये जिससे उठते समय उत्तर और पूर्वकी ओर अपनी दृष्टि पड़े । शयनसे उठते समय हर्षितचित्त होकर उठना चाहिये । ग्रन्थकार कहते हैं कि जो पुरुष रातदिनकी इस विधिको करता है वही क्रियाकी विधिका अनुसरण - पालन करता है ।।१४२१-२३॥
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इस प्रकार शरीरसंबंधी क्रियाका वर्णन पूर्ण हुआ। अब जाप व पूजाकी विधि कहते हैं
जाप और पूजा करते समय जो क्रिया बतलाई है, उसका हे भव्यजीवों ! वर्णन सुनो। श्लोकोंमें उसका जैसा वर्णन किया गया है वैसा कहता हूँ || १४२४|| बुद्धिमान मनुष्य पूर्व दिशाकी ओर मुख कर मन, वचन, कायसे जाप करे । यदि कदाचित् पूर्व दिशा टलती हो तो उत्तर दिशाकी ओर मुख कर मनोयोगपूर्वक जाप करे । दक्षिण और पश्चिम दिशा जाप करनेके लिये सर्वथा वर्जित है। तीन श्वासोच्छ्वासमें एक बार णमोकार मन्त्रका उच्चारण होता है अतः इसी विधिसे विचारपूर्वक णमोकार मन्त्रका जाप करे ।। १४२५-१४२६॥
१ तिया सेय स० २ ग्रन्थनिमें स०
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