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श्री कवि किशनसिंह विरचित एकादश प्रतिमा वर्णन
चौपाई अब एकादश प्रतिमा सार, जुदो जुदो तिनकों निरधार । सो भाष्यौं आगम परवान, सुणि चित धारो परम सुजान ॥७१९॥ दर्शन व्रत सामायिक कही, पोसह सचित्त त्याग विधि गही । रयनि असन त्यागी ब्रह्मचार, अष्टम आरंभको परिहार ॥७२०॥ नवमी परिग्रहको परिमान, दशमी अघ उपदेश न दान । एकादशमी दोय प्रकार, क्षुल्लक दुतिय एलक व्रत धार ॥७२१॥ श्रेणिक पूछे गौतम तणी, दरसन प्रतिमाकी विधि भणी । गौतम भाष्यौ श्रेणिक भूप, दरसन प्रतिमा आदि सरूप ॥७२२॥ एकादशकी जो विधि सार, जुदी जुदी कहिहौं निरधार । याहैं सुनि करि धरिहैं जोय, श्रावकव्रतधारी हैं सोय ॥७२३।। प्रथमहि दरसन प्रतिमा सुनो, त्यों निज आतम सहजै मुनो । दरसन मोक्षबीज है सही, इह विधि जिन आगममें कही॥७२४॥ दरसन सहित मूल गुण धरे, सात विसन मन वच तन हरे ।
दरसन प्रतिमाको सुविचार, कछु इक कहौ सुनौ 'सुखकार ॥७२५॥ अब ग्यारह प्रतिमाओंका जो सार है उसका पृथक् पृथक् निर्धार कर आगमके अनुसार कथन करता हूँ सो हे उत्कृष्ट ज्ञानी जनों! उसे सुनकर हृदयमें धारण करो ॥७१९॥ दर्शन, व्रत, सामायिक, प्रोषध, सचित्त त्याग, रात्रिभोजन त्याग, ब्रह्मचर्य, आरंभ त्याग, परिग्रह त्याग, पापोपदेश त्याग (अनुमति त्याग) और उद्दिष्ट त्याग ये ग्यारह प्रतिमाएँ हैं। इनमें ग्यारहवीं प्रतिमा दो प्रकारकी है-एक क्षुल्लक व्रतधारी और दूसरी एलक व्रतधारी ॥७२०-७२१।।
राजा श्रेणिकने गौतम स्वामीसे पूछा कि हे प्रभो! दर्शन प्रतिमाकी विधि कहिये। उत्तरमें गौतम स्वामीने कहा कि हे श्रेणिक राजन् ! मैं दर्शन प्रतिमाको आदि लेकर ग्यारह प्रतिमाओंकी जो विधि है उसका पृथक् पृथक् निर्धार कर कथन करता हूँ इसे सुन कर जो धारण करता है वह श्रावक व्रतधारी होता है ॥७२२-७२३॥ ___ सबसे पहले तुम दर्शन प्रतिमाको सुनो और अपने आत्मामें सहज ही उसका मनन करो। दर्शन-सम्यग्दर्शन मोक्षका बीज है ऐसा जिनागममें कहा गया है ॥७२४॥ जो सम्यग्दर्शनके साथ आठ मूलगुण धारण करता है तथा मन वचन कायसे सात व्यसनोंका त्याग करता है वह दर्शन प्रतिमाका धारक है। यहाँ दर्शन प्रतिमा संबंधी कुछ विचार करता हूँ सो हे भव्यजनों! उस
१निरधार स०
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