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क्रियाकोष नरक थकी नीकलिक सोई, देस नाम करहाट सुजोई । कौसल्या नगरी नरपाल, 8 संग्रामशूर गुणमाल ॥८५६॥ तसु पटतिया वल्लभा नाम, राजसेठ श्रीधर है ताम । श्रीदत्ता भार्या तिह तणी, राजपुरोहित लोमस भणी ॥८५७॥ प्रोहित-भार्या लोमा नाम, महीदत्त सुत उपज्यो ताम । सात विसन लंपट अधिकानी, रुद्रदत्त द्विजको वर जानी ॥८५८॥ महीदत्त कुविसनतें जास, पिता लक्ष्मि सब कियौ विनास । जूवा वेश्या रमि अधिकाय, राजदण्ड दे निरधन थाय ॥८५९॥ घरमें इतो रह्यो नहि कोय, भोजन मिलियो हूँ नहि जोय । तब द्विज काढि दियो घर थकी, गयो सोपि मामा घर तकी ॥८६०॥ मामैं तसु आदर नहि दियो, बहु अपमान तासकौ कियो । भाग्यहीन नर जहँ जहँ जाय, तहँ तहँ मानहीनता पाय ॥८६१॥
सवैया तेईसा जा नरके सिर टाट सदा रवि-ताप थकी दुख जोरि लहै है, पादप बेल तणी तकि छांह गये सिर बेलकी चोट सहै है । ता फलतें तसु फाटि है सीस वेदनि पाप उदै जु गहै है,
भाग्य बिना नर जाय जहाँ, तहँ आपद थानक भूरि रहै है ॥८६२॥ करहाट नामका देश है। उसमें कौशल्या नगरी है, वहाँ संग्रामशूर नामका गुणवान राजा था। उसकी पट्टरानीका नाम वल्लभा था। राजश्रेष्ठीका नाम श्रीधर था, सेठानीका नाम श्रीदत्ता था। राजपुरोहितका नाम लोमश था और पुरोहितानीका नाम लोमा था। ब्राह्मणका जीव नरकसे निकल उसी पुरोहितके महीदत्त नामका पुत्र हुआ। रुद्रदत्त ब्राह्मणकी संगति पा कर महीदत्त सात व्यसनोंमें आसक्त हो गया। वह जुआ खेलता और वेश्यासेवन करता। अत्यधिक राजदण्ड देते देते वह निर्धन हो गया। इधर जब घरमें कुछ नहीं रहा तब उसे भोजन मिलना भी दुर्भर हो गया। पिताने उसे घरसे निकाल दिया। घरसे निकल कर वह मामाके यहाँ गया परंतु वहाँ उसे कोई आदर नहीं मिला अपितु बहुत अपमान सहन करना पड़ा । सो ठीक ही है-भाग्यहीन मनुष्य जहाँ जहाँ जाता है वहाँ वहाँ उसे मानहीनता ही प्राप्त होती है।॥८५५-८६१॥ यही बात एक दृष्टान्त द्वारा प्रकट करते हैं-'किसी मनुष्यका सिर गंजा था, वह जब
१ खल्वाटो दिवसेश्वरस्य किरणैः सन्तापितो मस्तके वांछन्देशमनातपं विधिवशात् बिल्वस्य मूलं गतः । तत्राप्यस्य महाफलेन पतता भग्नं सशब्दं शिरः प्रायो गच्छति यत्र भाग्यरहितः तत्रैव यान्त्यापदः ॥९१।। (भर्तृहरि-नीतिशतक)
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