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क्रियाकोष
ग्रहशांति ज्योतिष वर्णन चौपाई
ज्योतिस चक्रतणी सुनि वात, जम्बूद्वीप मांहि विख्यात । दोय चंद सूरज दो कहै, जैनी जिन आगम सरद है | १३४८॥ इक रवि भरत उदै जब होय, दूजो ऐरावतिमें जोय । दुहुनि विदेह मांहि निसि जाणि, जोतिसचक्र फिरे इह वाणि ॥ १३४९॥ भरत रु ऐरावत निसि जबै, दुहुन विदेह दुहूं रवि तबै । इक पूरव विदेह रवि जान, अपर विदेह दूसरो मान ॥ १३५०॥ फिरते रवि शशिको इह भाय, आदि अन्त थिरता नहि थाय । एक चंद्रमाको परिवार, आगम भाष्यो पंच प्रकार ॥१३५१ ॥
शशि रवि ग्रह नक्षत्र जाणिये, पंचम सहु तारे ठाणिये । तिनकी गिनती इह विधि कही, एक चंद्रमा इक रवि सही ॥१३५२||
२१३
ग्रह अठ्यासी अवर नक्षत्र, भाषे अट्ठाईस विचित्र । छासठ सहस रु नव सय सही, ऊपरि पचहत्तरिकौं गही ॥१३५३॥
ग्रह शान्ति - ज्योतिष वर्णन
अब ज्योतिष चक्र संबंधी बात सुनो। जम्बूद्वीपमें दो सूर्य और दो चन्द्रमा हैं इस प्रकार जिनागमके कहे अनुसार जैनी जन श्रद्धा करते हैं ।। १३४८ ॥
एक सूर्यका जब भरत क्षेत्रमें उदय होता है तब दूसरे सूर्यका ऐरावत क्षेत्रमें उदय होता है । पूर्व पश्चिमके भेदसे दोनों विदेह क्षेत्रोंमें उस समय रात्रि रहती है । यह ज्योतिष चक्र निरन्तर परिभ्रमण करता रहता है ।। १३४९|| जब भरत और ऐरावत क्षेत्रमें रात्रि रहती है तब दोनों विदेह क्षेत्रोंमें दो सूर्य रहते हैं - एक पूर्व विदेह क्षेत्रमें और दूसरा पश्चिम विदेह क्षेत्रमें ॥१३५०॥
सूर्य एवं चन्द्रमाका भ्रमण करते रहना स्वभाव है । इनके परिभ्रमणका आदि अन्त नहीं है । आगममें एक चन्द्रमाका परिवार इस प्रकार कहा गया है ।। १३५१।।
चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और प्रकीर्णक तारे ये ज्योतिषी देवोंके पाँच भेद हैं । इनकी गिनती इस प्रकार कही गई है । चन्द्रमा और सूरज एक एक है, ग्रह अठासी और अन्य नक्षत्र अट्ठाईस है । छासठ हजार नौ सौ पचहत्तर ( ६६९७५ ) इन पाँच अंकोंके ऊपर चौदह शून्य देकर मिलाने पर सब उन्नीस अंक हो जाते हैं उनका प्रमाण छासठ हजार नौ सौ पचहत्तर कोड़ाकोड़ी होता
१ भमें रवि तबै न०
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