________________
१७८
श्री कवि किशनसिंह विरचित मिथ्यामत निषेध
चौपाई भादव गये लगै आसोज, पडिवा दिवस तणी सुनि मौज । लडकी बहु मिलि गोबर आनि, सांझी मांडै अति हित ठानि ॥११२५।। पहर आठ लौ राखै जाहि, फिर दूजे दिन मांडै ताहि । मांडै दिन दिन नव नव रीति, तेरसका दिन लौं धरि प्रीति ॥११२६॥ चौदस मावस दह दिन मांही, सांझी बडी जु नाम धराही । मिलै पांच दस प्रौढा नारी, मांडै ताहि विचारि विचारी ॥११२७॥ हाथ पांव मुख करि आकार, गोबरका गहना तन धार । 'उपर चिरमी जल पोस लगाय, कोडी फूल लगावै जाय ॥११२८॥ इम विपरीत करै अधिकाय, तास पापको कहै बनाय । खोड्यो बांमण सांझी लेन, आयो २भावै वनिता बैन ॥११२९॥ राति जगावै गावै गीत, ऐसी महा रचै विपरीत । करि गुल धाणी दे लाहणा, आवै सो राखै परतणा ॥११३०॥
"मिथ्यामत निषेध भाद्रपद मासके व्यतीत होने पर आसोज लगता है उसके पडवाके दिन बहुत सी लड़कियाँ गोबर लाकर हित बुद्धिसे सांझीकी स्थापना करती हैं, आठ प्रहर तक उसे रखती हैं, दूसरे दिन दूसरी स्थापना करती हैं, इस प्रकार तेरस तक प्रीतिपूर्वक नई नई सांझीकी स्थापना करती रहती हैं। चौदश और अमावसके दिन जिस साँझीकी स्थापना करती हैं उसका बड़ी सांझी नाम रखती है। फिर दश पाँच प्रौढा स्त्रियाँ एकत्रित होकर उस सांझीको विचार विचार कर सजाती हैं, हाथ पाँव और मुखके आकार बना कर गोबरके गहने पहनाती हैं। उस पर चिरमी (?) का जल छींटती है, कौडी और फूल चिपकाती है इस तरह विपरीत कार्य कर उसके पापको बना बना कर कहती हैं। स्त्रियाँ ऐसे वचन कहती हैं कि खोटा ब्राह्मण इस सांझीको लेनेके लिये आया था। रात्रि जागरण करती हैं तथा गीत गाती हैं इस तरह महा विपरीत बात करती हैं। आपसमें गुड़ आदिका आदान प्रदान करती हैं, अपना दूसरोंको देती है और दूसरोंका स्वयं लेती हैं ॥११२५-११३०॥ आसोज सुदी पडिवाके दिन उस साँझीको उतार कर नदी या तालाबमें डाल देती है। देखों, लोगोंने उस सांझीकी इतनी प्रभुता मान ली कि देव मान कर उसकी पूजा
१ऊपर चीर जर पोस मगाय स० २ भाखै न०
* इस प्रकरणमें ग्रंथकर्ताने राजस्थानमें प्रचलित अनेक रूढ़ियोंका वर्णन किया है। प्रान्त भेद तथा रीति-रिवाजोंमें विशेषता होनेसे यदि किसी रूढिका स्पष्टीकरण अनुवादमें न हो सका हो तो उसे विज्ञजन संशोधित कर ले।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org