________________
क्रियाकोष
सुदि पडिवाको ताहि उतारि, नदी ताल माहे दे डारि । ऐसी प्रभुता देखौ जास, देव मान पूजत है तास ॥ ११३१॥
अरु सांझी किसकी है धिया, को खोड्यो द्विज किणकी तिया । गोबरकी मांडै किम तिया, वरसा वरसी कहुँ समझिया ॥११३२॥
१७९
परगट लखि नजरां इह रीति, मांने ताहि धरै बहु प्रीति । पापी भेद लहे तसु नाहि, गोबर सरद रहै जा मांहि ॥ ११३३॥ घटिका दोय बीत है जबै, तामै त्रस उपजत हैं तबै । तिनके पाप तणौ नहि पार, भव भवमें दुखको दातार ॥११३४|| महा मिथ्यात तणौ जे गेह, नरक तणौ दायक है जेह । छेदन भेदन तापन जहाँ, ताडन सूलारोहण तहाँ ॥ ११३५॥ दुख भुगतै तहँ पंच प्रकार, इस मिथ्यात थकी निरधार । जिनमतके धारी हैं जेह, सो मेरी विनती सुनि एह ॥ ११३६॥ इनहि मांडि मत पूजि लगार, इह संसार बढावन हार । आन मती पूजन मन लाय, तिनसौ कछु कहनो न बसाय ॥ ११३७॥
सोरठा
दिन पनरे के मांहि, मरण दिवस पित-मातको ।
श्रावक जे हरषांहि, ते जिनमारगतैं विमुख ॥११३८॥
Jain Education International
I
1
करने लगे । इसका विचार नहीं करते कि सांझी किसकी पुत्री है, किसकी स्त्री है, और किसने उसे खोटा किया, गोबरकी स्त्री क्यों बनाती हैं, प्रत्येक वर्ष यह कार्य क्यों करती हैं ? यही कहती है कि हमारे यहाँ यह परम्परा चली आती है । इस परम्पराका पालन कर बहुत प्रसन्न होती हैं । परन्तु अज्ञानी जीव इसका भेद नहीं जानते । गोबरमें आर्द्रता रहती है इससे उसमें दो घड़ी बीतने पर त्रस जीव उत्पन्न हो जाते हैं। उनके घातसे ऐसा अपार पापबंध होता है जो भवभवमें दुःखका देनेवाला है । कविवर कहते हैं कि जिनके घर यह मिथ्यात्वका कार्य होता है उनके लिये वह नरकका देने वाला होता है । नरकमें छेदा जाना, भेदा जाना, तपाया जाना, ताड़ित किया जाना और शूली पर चढ़ाया जाना आदि पाँच प्रकारका जो दुःख भोगना पड़ता हैं उसका कारण मिथ्यात्व ही है । जो जिनमतके धारक प्राणी हैं वे मेरी इस विनतिको सुन लें कि साँझीकी न तो स्थापना करें और न ही उसकी पूजा करें, क्योंकि यह क्रिया संसारको बढ़ाने वाली है। अन्य मत वाले इसकी पूजा मन लगाते हैं उनसे कुछ कहते नहीं बनता ।। ११३१-११३७।।
आसोज कृष्ण पक्षके पन्द्रह दिनोंमें जो श्रावक मातापिताके मरण दिनके उपलक्ष्यमें भोजन
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org