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श्री कवि किशनसिंह विरचित भडभुंज्याके चबैणे सिकानेका कथन
चौपाई भडभूज्यो सेकै जो धान, तास क्रिया सुनिये मतिमान । रांधा चावल देय सुखाय, तस चिबडा मुरमुरा बनाय ॥९४२॥ गेहूँ बाजराकी घंघरी, रांध मुरमुरा सेकै धरी । मका जवार उकालै जाण, फूला कर बेचै मन आण ॥९४३॥ करे भूगडा सैकै चणा, मूंग मोंठ चौलादिक घणा । इत्यादिक नाजहि सिकवाय, बिकै चरणो सब जन खाय ॥९४४॥ शूद्र तुरक भडभुंजा हालि, तिनके भाजनमें जल घालि । करै चबैणा ताजा जानि, सबै खाय मन भ्रांति न आनि ॥९४५॥ जो मन होय चरणो परी, तो खइये इतनी विधि करी । निज घरतें लीजे जल नाज, तिनहि सिकावै 'व्रत धरि साज ॥९४६॥ पीतल लोह चालणी मांहि, छांनि लेय बालू कडवाहि । इह किरिया नीकी लखि रीति, खाहु चबैणो मन धर प्रीति ॥९४७॥ चौलाकी फली, कैर, करेली, सांगरी आदिका कथन
चौपाई चौल हरी चौलाकी फली, आवै २गाँव गाँव तें चली ।
तिनको शूद्र सिजाय सुखाय, बैचे सो सगरे जन खाय ॥९४८॥ अब भड़भूजा जिस धान्यको सेंकते हैं उसकी विधिको हे बुद्धिमान जनों ! सुनो। भड़ जा लोग रांधे हुए चावलोंको सुखा कर उनका चेवड़ा बनाते हैं। इस प्रकार गेहँ और बाजराकी बूंघरियोंको रांध कर उनसे मुरमुरा तैयार करते हैं । मका और ज्वारको उकाल कर तथा उसके फूले बना कर बेचते हैं। पानीमें भिगो कर चना, मूंग, मोठ और चौला आदि अनाजोंको सेंकते हैं तथा उनका चबैणा बना कर बेचते हैं। सब लोग इन चबैणोंको खाते हैं। शूद्र और तुर्की लोग जो भड़भूजाका काम करते हैं वे अपने बर्तनोंका जल डाल कर चबैणा तैयार करते हैं उसे सब लोग ताजा जान कर खाते हैं और मनमें किसी प्रकारकी ग्लानि नहीं करते; परन्तु इस विधिसे तैयार हुआ चबैणा खाने योग्य नहीं है। किसी व्रती मनुष्यको यदि चबैणा खानेका राग हो तो वह अपने घरसे पानी और अनाज ले जा कर सिकवा ले तथा पीतल या लोहकी चलनीसे छनवा कर बालूको अलग कर दे। यह क्रिया उत्तम है अतः इसी रीतिसे तैयार करा कर चबैणा खा कर मनको प्रसन्न करें ॥९४२-९४७॥
चौलेकी फली, कैर, करेली तथा सांगरीका कथन चौलेकी हरी फली गाँव गाँवसे आती है उसे लेकर शूद्र लोग पहले पानीमें सिझाते हैं फिर १ विधि धरि न० स० २ मारवारतें चली न० स०
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