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श्री कवि किशनसिंह विरचित
छन्द चाल
तहँ पांच अणुव्रत जाणो, गुणव्रत फुनि तीन वखाणो । शिक्षाव्रत मिलिकैं च्यारी, दूजी प्रतिमाकौं धारी ॥७४७॥ बारा व्रत वरनन आगे, कीनौं चित धरि अनुरागें । पुनरुक्त दोष तैं जानी, दुजा नहि कथन कथानी ॥७४८ ॥ तीजी प्रतिमा सामायक, भविजनकौं सुर शिव दायक । आगें बारा व्रत मांही, वरनन कीनों सक नांही ॥७४९ ॥ चौथी प्रतिमा तिहिं जानौ, प्रोषध तसु नाम वखानौ । वरनन सुणिवेको चाव, द्वादश व्रत मधि दरसाव ॥७५० ॥ पंचम प्रतिमा बड भाग, सुणि सचित करो परित्याग । काचो जल कोरो नाज, फल हरित सकल नहि काज ॥७५१ ॥ सब पात्र शाक तरु पान, नागर वेलि अघ थान । सहु कंदमूल हैं जेते, सूके फल सारे तेते ॥७५२ ॥ अरु बीज ' जानिये सारे, माटी अरु लूण विचारे । करि त्याग सचित व्रत धारी, पंचम प्रतिमा तिहिं पारी ॥ ७५३॥ दिन चढै घडी दोय सार, पछिलो दिन बाकी धार । इतने मधि भोजन करिहै, छट्ठी प्रतिमा सो धरिहै ॥७५४॥
पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत, इन बारह व्रतोंको जो धारण करता है वह दूसरी व्रत प्रतिमाका धारी है || ७४७ || बारह व्रतोंका वर्णन पहले हृदयमें अनुराग धारण कर किया जा चुका हैं इसलिये पुनरुक्ति दोषके कारण द्वितीय बार उनका कथन नहीं किया है ॥ ७४८ ॥
तीसरी सामायिक प्रतिमा है, जो भव्यजीवोंको स्वर्ग और मोक्ष देनेवाली है । पहले बारह व्रतोंमें सामायिकका वर्णन निःसंदेह किया जा चुका है || ७४९ ||
चौथी प्रोषध प्रतिमा है। इसका वर्णन सुननेका उत्साह यदि है तो उसे बारह व्रतोंके वर्णनमें देखें ॥७५०॥
पाँचवीं प्रतिमा सचित्तत्याग है । हे भाग्यवान जनों! उसका वर्णन सुन कर सचित्त वस्तुओंका त्याग करो । कच्चा जल, कोरा ( बिना भुना, बिना पकाया ) अनाज, सब प्रकारके हरे फल, सब प्रकारकी पत्तों वाली शाक, वृक्षोंके पत्ते, नागरवेलका पत्र ( ताम्बूल ), ताजे और सुखाये हुए कंदमूल, सब प्रकारके बीज, मिट्टी और कच्चा नमक, इत्यादि सचित्त वस्तुओंका जो त्याग करता है उसीके पंचम प्रतिमा पलती है ।। ७५१-७५३ ।।
१ कहानी स० २ सुणि सब सचित्त परित्याग न० स० ३ नागरवल्ली न० ४ जातिके सारे स
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