________________
३०
__ श्री कवि किशनसिंह विरचित ईंधन सोध रसोई मांहि, लावे तासों असन कराहि । तातें पुन्य लहै उत्कृष्ट, भव भव में सुख लहै गरिष्ट ॥१९०॥ __ अथ मुरब्बादिक वर्णन
चौपाई कोऊ मान बडाई काजे, अरु जिह्वा लोलुपता साजे । खांड तणी चासणी कराय, दाख छुहारा मांहि डराय ॥१९॥ नाना भांति अवर भी जान, करइ मुरब्बा नाम बखान । कैरी अगनि उपरि चढवाय, खांडपात मांहे 'नखवाय ॥१९२॥ कहै नाम तसु कैरीपाक, कर वावै तस अशुभ विपाक । तिनकी मरजादा वसु जाम, व्रतधरके पीछे नहि काम ॥१९३॥ जेती उष्ण नीरकी वार, तेती इन संख्या निरधार । रहित विवेक मूढता जान, राखे घरमें बहु दिन आन ॥१९४॥ मास दुमास छमास न ठीक, वर अधिक दिन सों तहकीक । काहूमें तो पेस करेय, मांगें तिनको मांगा देय ॥१९५॥ जातें लखै बड़ाई आप, तिस समान कछु अवर न पाप ।
मदिरा दोष लगै सक नांहि, तातें भविजन येहिं तजांहि ॥१९६॥ स्त्री होती है उसका हृदय इन क्रियाओंके पालन करनेमें निपुण रहता है ॥१८८-१८९॥ वह ईंधन शोध कर रसोई घरमें लाती है तथा उसीसे रसोई बनाती है इसलिये उसे उत्कृष्ट पुण्य प्राप्त होता है और उस पुण्यसे वह भवभवमें श्रेष्ठ सुख प्राप्त करती है ॥१९०॥
आगे मुरब्बा आदिकका वर्णन करते हैं
कोई मनुष्य मान-बड़ाई और जिह्वाकी लोलुपतासे शक्करकी चासनी बनवा कर उसमें दाख और छुहारा डालते हैं। इसी प्रकार और भी पदार्थ उस चासनीमें डाल कर उसका मुरब्बा नाम रखते हैं। आमको अग्निके ऊपर चढ़ाकर पश्चात् शक्करकी चासनीके पात्रमें डालते हैं और कैरीपाक नामसे कहते हैं। इस प्रकारके पाकसे अशुभ फल ही प्राप्त होता है। इनकी मर्यादा आठ प्रहरकी है इसलिये व्रती मनुष्यको मर्यादाके बाद खाने योग्य नहीं है। गर्म जलकी जितनी मर्यादा है उतनी ही इन मुरब्बा तथा पाकोंकी है। विवेक रहित मूर्ख जन इन्हें लाकर अपने घरमें बहुत दिन तक रखे रहते हैं। मास, दो मास, छह मासका कुछ ठीक नहीं है एक वर्षसे अधिक दिन तक भी रखे रहते हैं। वे यह मुरब्बा आदिक किसीके लिये स्वयं देते हैं और किसीको माँगने पर देते हैं। जिसमें अपनी मान-बड़ाई देखते हैं वैसा करते हैं। ग्रंथकर्ता कहते हैं
१ डरवाय स० २ याहिं न० स०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org |