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श्री कवि किशनसिंह विरचित
रसोई चक्की वा परहिंडा (पानी रखनेका स्थान) आदिका वर्णन
चौपाई जा घरमांहि रसोई होय, तहां तानिये चंदवो लोय । अवर 'परहिंडा ऊपर जान, ऊखल चाकी है जिहि थान ॥१७६॥ फटकै नाज रु वीणै जहां, चून छानियो थानक तहां । जिस जागह जीमन नित होय, सयन करण जांगो अवलोय ॥१७७॥ सामायिक कीजै जिहि धीर, ए नव थानक लख वर वीर । २ऊपर वसन जहां ताणिये, ३श्रावक चलण तहां जाणिये ॥१७८॥ चाकी ऊखलके परिमाण, ढकणा कीजै परम सुजाण । श्वान बिलाई चाटै नाय, कीजै जतन इसी विधि भाय ॥१७९॥ खोट लिये मूसलतें नाज, धोय इकान्त धरो बिन काज । छाज 'चालणा चालणी तीन, चाम तणा तजिये परवीण ॥१८॥ चरम वस्तुको त्यागी होय, इनको कबहुं न भेटे सोय ।
दिनमें खोटे पीसै नाज, सो खाना किरिया सिरताज ॥१८१॥ रसोई चक्की वा परहिंडा (पानी रखनेका स्थान) आदिका वर्णन अब आगे रसोई घर, चक्की और परहिंडा आदिका वर्णन करते हैं
जिस घरमें रसोई बनती हो वहाँ चंदेवा तानना चाहिये। इसके सिवाय परहिंडा (घिनोची-पानी रखनेका स्थान), उखली तथा चक्कीका स्थान, अनाजके फटकने तथा बीननेका स्थान, चून (आटा आदि) को चालनेका स्थान, नित्य प्रति भोजन करनेका स्थान, शयनका स्थान और सामायिक करनेका स्थान, इन नौ स्थानों पर जहाँ कपड़ा ताना जाता है वहाँ श्रावक धर्मका चलन जानना चाहिये ॥१७६-१७८॥
चक्की और उखलीके ऊपर उसी नापका ढक्कन बनवा कर रखना चाहिये जिससे कुत्ता तथा बिलाव आदि उन्हें चाट न सके । इस विधिसे इनकी शुद्धिका यत्न करना चाहिये ॥१७९॥ ___मूसलसे अनाज कूट लेनेके बाद उसे धोकर अलग एकान्त स्थानमें रख देना चाहिये। चमड़ेसे निर्मित सूपा, चलना तथा चलनीका त्याग करना चाहिये । जो चर्मनिर्मित वस्तुका त्यागी है उसे इनका संग्रह कभी नहीं करना चाहिये। दिनमें अनाज कूटना तथा पीसना, यह भोजन संबंधी क्रियाओंमें प्रमुख क्रिया है ॥१८०-१८१॥ दिनमें अनाज अपनी दृष्टिसे शोधा जा सकता
१ घिनोची स. २ ऊपर वसन ताणिये जोय स. ३ श्रावक चलत जानिये सोय स. ४ चांटे तांहि, याते जतन भलो शक नांहि न० ५ तराजू चलनी स०
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