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क्रियाकोष करुणा व्रतपालक जेह, टालें मनमें धर नेह । बिन अतीचार फल सारा, सुखदायक हो अधिकारा ॥२७४॥ जे धन्य पुरुष जगमांहीं, ते करुणा भाव धराहीं । करुणा सब विधि सुखदायक, पदवी पावै सुरनायक ॥२७५॥ अथवा चक्री धरणेश, विद्याधर श्रेणि नरेश ।। इन पदवी कहा बडाई, संसार तरण सुखदाई ॥२७६॥ यातें तीर्थंकर होई, संदेह न आणो कोई । तातें सुनिये भवि जीव, करुणा चित धार सदीव ॥२७७॥
सत्याणुव्रतका कथन । चौपाई-झूठ थूल कबहुं न मुख कहै, संकट पडै मौनको गहै ।
त्याग असत्य सर्वथा नाही, या लघु खिरहै मुखमांहीं ॥२७८॥ जीव दया पाली है जदा, झुठ वचन बोलै है तदा ।
है असत्य सांच ही जाण, जहाँ जीवकै बचिहैं प्राण ॥२७९॥ टालते हैं। अतिचारके बिना ही श्रेष्ठ फलकी प्राप्ति होती है और व्रत अधिक सुखदायक होते हैं ॥२७४॥ संसारमें जो धन्य पुरुष हैं वे करुणाभावके धारक होते हैं। करुणा सब प्रकारके सुखोंको देनेवाली है। इस व्रतके धारक मनुष्य इन्द्रपद प्राप्त करते हैं अथवा चक्रवर्ती, धरणेन्द्र
और विद्याधर श्रेणियोंके राजपदको प्राप्त होते हैं । अथवा इन पदोंकी क्या महिमा है ? करुणा व्रत तो संसारसे पार करनेका सरल उपाय है। इस व्रतके प्रभावसे मनुष्य तीर्थंकर होता है इसमें संदेह नहीं है। इसलिये हे भव्यजीवों ! सुनो और हृदयमें सदा करुणाव्रत धारण करो ॥२७५-२७७।।
आगे सत्याणुव्रतका कथन करते हैं
जो स्थूल झूठ मुखसे कभी नहीं कहता। यदि कभी संकट आ पड़ता है तो मौन ले लेता है। असत्यका सर्वथा त्यागी नहीं है इसलिये कभी मुखसे सूक्ष्म झूठ निकल पड़ता है। यदि झूठ बोलनेसे जीवदया पलती दीखती है तो झूठ वचन भी बोलता है। ऐसा वचन झुठ होने पर भी सत्य ही जानना चाहिये क्योंकि उससे जीवके प्राणोंकी रक्षा होती है। भावार्थ :-लोकमें एक कथा प्रसिद्ध है-एक शिकारी हाथमें चिड़ियाको पकड़कर उसकी गर्दन पर अंगूठा रख कर मुनिराजसे पूछता है-बताओ, यह चिड़िया जीवित है या मरी ? मुनिराजने उसे जीवित जानते हुए भी कह दिया कि मरी है। मुनिराजका उत्तर सुन शिकारीने मुठ्ठी खोल चिड़ियाको उड़ाते हुए कहा कि यह तो जीवित थी, आपने उसे झूठ ही मरी कह दिया। मुनिराजने कहा कि यदि मैं इसे जीवित कहता तो तुम उसकी गर्दन पर रखे अंगूठेको दबा कर तत्काल मार डालते और कहते कि जीवित कहाँ है ? यह तो मरी है। यहाँ मुनिराजने जीवदयाको लक्ष्य कर जीवित चिड़ियाको मरी हुई कहा, यह झूठ नहीं है, सत्य है ।।२७८-२७९।।
१ कै नृप दुहु श्रेणि खगेश न० २ पदकी स० न० ३ संसार तणा क० न०
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