Book Title: Khartar Gaccha Ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

View full book text
Previous | Next

Page 22
________________ २२ टीका रची है, उसकी प्रशस्ति में लिखा है कि : श्रीमज्जिनेश्वरः सूरिजिनेश्वरमतं ततः । शरद्राकाशशिस्पष्ट-समुद्रसदृशं व्यधात् ॥ १२ ॥ नवांग-वृत्तिकृत्-पट्टेऽभयदेवप्रभुर्गुरो । तस्य स्तम्भनकाधीशमाविश्चक्रे समं गुणैः ॥ १३ ॥ श्राद्धप्रबोधप्रवणस्तत्पदे जिन वल्लभः । सुरिर्वल्लभतां भेजे, त्रिदशानां नृणामपि ॥ १४ ॥ ततः श्री रुद्रपल्लीयगच्छ संज्ञा, लसद्यशाः । नृपशेखरतां भेजे, सूरीन्द्रो जिनशेखरः ॥ १५ ॥ इस प्रमाण से भी स्पष्ट होता है कि जिनेश्वरसूरि से जिनवल्लभसूरि तक तो खरतर का नाम निशान भी नहीं था, बाद में जिनदत्तसूरि को लोग खरतर खरतर कहने लगे। इसलिए ही तो जिनदत्तसूरि के खिलाफ जिनशेखरसूरि की परम्परा में खरतर शब्द को स्थान नहीं मिला है। अर्थात् जिनवल्लभसूरि के पट्टधर जैसे जिनदत्तसूरि हुए वैसे जिनशेखरसूरि भी जिनवल्लभसूरि के पट्टधर आचार्य हुए हैं और उनका मत खरतर नहीं, पर उनके मत का नाम रुद्रपाली था। यदि जिनेश्वरसूरि से ही खरतर मत प्रचलित हुआ होता तो जिनशेखरसूरि अपने को रुद्रपाली गच्छ न लिख कर खरतर गच्छ की एक शाखा लिखते ! अतः इस प्रमाण से भी यही सिद्ध होता है कि वि. सं. १४६८ तक तो किसी की भी यह मान्यता नहीं थी कि जिनेश्वरसूरि को खरतर बिरुद कभी मिला था। खुद जिनदत्तसूरि ने "गणधरसार्द्धशतक, सन्देहदोलावली, गणधरसप्तति, अवस्थाकुलक, चैत्यवन्दनकुलक, चर्चरी, उपदेशरसायन, कालस्वरुपकुलक आदि अनेक ग्रंथों की रचना की पर आपने कहीं पर यह नहीं लिखा कि जिनेश्वरसूरि को खरतर बिरुद मिला और हम उनकी सन्तति श्रेणी में खरतर हैं। ___ 'खरतर' शब्द की उत्पत्ति तो जिनदत्तसूरि से हो गई थी, पर वह अपमानसूचक होने से किसी ने इस शब्द को अपनाया नहीं था। जिनदत्तसूरि के पट्टधर जिनचन्द्रसूरि हुए, उन्होंने भी किसी स्थान पर ऐसा नहीं लिखा कि जिनेश्वरसूरि या जिनदत्तसूरि से हम खरतर हुए हैं। इतना ही नहीं पर जिनपतिसूरि ने (वि. सं. १२२३ में सूरिपद) जिनवल्लभसूरि कृत संघपट्टक ग्रंथ पर जो टीका रची है उसमें उन्होंने जिनेश्वरसूरि से जिनवल्लभसूरि तक के आचार्यों का अत्युक्ति पूर्ण गुण वर्णन करते हुए भी चैत्यवासियों की विजय में उपलब्ध हुआ खरतर बिरुद को चैत्यवासियों के खण्डन विषयक ग्रंथ में भी ग्रंथित नहीं किया, अतः यह बात

Loading...

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 ... 256