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कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि
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ऋषभदेव ने कुमति को तो पहिले ही छोड़ दिया था इसलिए सुमति ही विवेक के साथ हो गयी । लेकिन मोह ने अपने सभी साथियों की हार सुनी तो उसकी आँखें लाल हो गयी तथा वह दांत पीसने लगा सपा अपने रोद्र रूप से उसने माक्रमण कर दिया । ऋषभदेव । विवेक रूपो सुमों को बुलाया भोर स्वयं अपूर्वकरण गुणस्थान में विचरने लगे। मोह की एक भी चाल नहीं चली और अन्त में वह भी मुख मोड़ कर चल दिया।
जब कामदेव ने मोह को भी भागते देखा तो वह अपनी पूरी सेना के साथ मैदान में उतर गया। लेकिन ऋषभदेव संयम रूपी रूप में सवार हो गये थे। तीन गुप्तियों उनके रथ के घोड़े थे । पंप महारत एवं क्षमा उनके योद्धा थे । ज्ञान रूपी तलवार को हाथ में लेकर सम्यक्त्व का छत्र तान कर वे मैदान में उतरे । रणभूमि से कामदेव के सहायक एक-एक करके भागना चाहा । लेकिन ऋषभदेव ने युद्ध भूमि का घेरा इतना सीव किया कि कोई भी वहां से भाग नहीं सका और सबको एक-एक करके जीत लिया गया । चारों कषायों को जीत लिया, मिथ्यात्व का पता भी नहीं चला । ऋषभदेव को कैवल्य होते ही देवो ने दुभि बजानी प्रारम्भ कर दी स्था चारों दिशाओं में ऋषमदेव के गुणगान होने लगे ।
__इस प्रकार कवि ने प्रस्तुत काव्य में काम विकार एवं उसके साथियों पर जिस प्रकार गुणों की विजय बतलायी है वह अपने आप में अपूर्व है । इस प्रकार के रूपक काव्यों का निर्माण करके जैन कवि अपने पाठकों को तत्कालीन युद्ध के वातावरण से परिचित भी रखते थे तथा उन्हें प्राध्यात्मिकता से दूर भी नहीं होने देते थे ।
भाषा एवं शैली
मयणजुज्झ यद्यपि अपभ्रंश प्रभावित कृति है लेकिन इसमें हिन्दी के शब्दों का एवं उसके दोहा एवं रष्ट, षट्पद, वस्तुबंध एवं फमित्त जैसे छन्दों का प्रयोग इस बाल का द्योतक है कि देशवासियों का मानस हिन्दी की पोर हो रहा था तथा वे हिन्दी की कृतियों के पढ़ने के लिए लालायित थे । हिन्दी का प्रारम्भिक विकास जानने के लिए मयरण जुज्झ अच्छी कृति है।
कषि ने कुछ तत्कालीन प्रचलित शब्दों का भी प्रयोग किया है । उसने सेना के स्थान पर फोन शब्द का तथा तुरही के स्थान पर नफीरी का प्रयोग किया है।
१ ले फीज सबलु संकहि करिव विधेक भा माइयउ ।