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नेमिश्वर को उरगानो
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भोग विलास करो तुम वाल, तपु न करि सके सुन्दरि । हम जोगी दि जोगु पराइ, ध्यान जुगति सौं कष्ट सहाइ । हम तुम सायु न बुझिय, जाऊ करि हम छाडी प्राय ।
करहु बहु विधि भोग विलास, नेमि वा जिन बंदि हौं । राजुल एवं नेमिकुमार का उत्तर प्रत्युत्तर
राजुल भने सुनौह जदु राइ, तुम ाँ छोडि परै हम जाइ । पापु कौन हम को पर, तुम जु कहो हम सौं घर जाम । जीब कह तु हो तजौ परान, घरन कमल दिन सेई है । धरु करि हो तुम नामु प्रधार, सिदि महिमन उतर पर नेमि फुपर जिन वंदि हौं ।॥२६॥ तव हि कुवर ते उत्तर दयो, घर को भरु तुम्हारे लेह । वन ह अकेली तपु करो, हम वह कष्ट सहै चितु साइ। तुम हि कुवरि सही कत पाइ, नेमि कुवर जिन बंखि हौं ॥२६।। उग्रसेनि धिध चतुर सुजान, कुवर सुनहु यो उत्तर ठानि । पास रही सेवा करो, जाउ घरें हो कसे रहो । गरुवो दुख बहु तू क्यों सही, खंडर तु मान को हाषि है।
बारह महिनों का विर वर्णन, सावन भावों
सावन भादो वर्षा काल, नीरु अपबलु वहुत प्रसराल । मेघ घटा अति नऊ नई, लह लह वीमुरी चमकति राति । तव कर रयनि समारे कंति, परदेसी चितु वह भर 1 दादुर भोर र दिन रैनि, पपीहा पिज़ पिउ करें। को झील करोउ म है नेत्र, तुम विन को जिउ राषिहे कंत । नेमि कुवर जिन वदिहौं ।।२।।
पासोज कातिक
कातिक पवार सरद स्तुि होइ, नरि हुलासु कर सवु कोई । निर्मल नीर सुहावनो, पिसि निर्मल ससि प्रति सोहति । भरि जति नैन सम्हारै कसि, विरह व्यथा प्रति ऊपजे । गीत नाव सुनि में पहुं पास, हम तुम बिनु पिय परी भमास । नेमि कुबर जिन बंदिही ।।२६।।