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कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि
पार्श्वनाथ सकुन सत्तावीसी
असं धचलवि धवल गलिहार धवलासपु कमलु जसु 1 धवल हंस दाहरिण बइठ वीणा पुस्तक कर लिय । करइ विदुरज जोग तूटी तहि परमेसरि पय कमल । पण विवि निम्मल चित्ति पयडु करिसु चंगवती पास ना गुण कित्ति ॥ १ ॥
एक दिवस पास जिरा गेह महिलदार पंडिय कय । ठकुरसी सुरिंग कवि गुणाल गाहा गीय कवित कह तर किय मय निसुखी समग्गल इव श्री पास जिणंद गुण ।
बर कम्मा देवी जागी सुथला सोलह निसि ण जरा अ ।
तु सुवहो सइ अतुल वलु दयाल या कलकडु प्रमयो जाणि जगनाथु ।
करहि न किं तुहु भच्च जहि कीया ये पाषिए मन बंछित सुख राव || २ ||
ताम विसिमि कद्दू कवि एम निसृणि मित तसु गुरण कत । सरस्य द्वंदु घरिंदु थक्कच कवि माणस थम्हा सरिसु । लहा कवरण परि कहिवि सक्कड़, परिण तु वयशु न प्रवथ ।
मू मनि पुव्व जगीस बुषिसार तसु, गुण कहिसु जस कणि मंडिज सीसु || ३ ||
देस सयल मज्झि सुपधि । जसु पटतर मलंइतविहि । दुढि बुढाहटु नानु श्रखिठ । तह चंपावती वरु जयरु | जहान को जगु वसइ दुखिउ । जैन महोछा महम घण जहि दिनि दिनि दोसन्ति । तहा वस ते घष्णु पर हजरा दिवस कहति ॥४॥
तासु रायरी म...
१. पाण्डुलिपि में छन्ब ५ से १४ तक नहीं है ।
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