Book Title: Kavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 305
________________ २६० कविवर बुचराज एवं उनके समकालीन कवि ऋषभदेव स्तवन इक्कहि पुरि व्यकिय । दुखि देखि न सक्रिय । हक्कारिउ | पांडव पंच भमंत देश तहि कुंभारि रोवतं पुत्त तासु मरण बोसरइ जाइ श्राप रखिउ जर जगबंतु भोमि रणि राखिउ सुमरिउ । तिम कह ठकुरसी रिसह जिणु तुह निवसंत वित्त परि । जइ जाइन तिय न दोस दुख, तर्बार कहउ इब कासु फिरि ॥। १॥ सुह जग गुर जीतषी तुही बड वैदु विश्वत्रिषु । तुहु गरबो गारुडी सयल बिनुहरहि ततखिणु । तुह सिद्धक्षर मंतु तंतु तुही तिभवरणपति । तुहु संजीवन जड़ी सुही दाता महत गति । इश्वाक वंस श्री रिसह जिरणु, नाभि तस्णु भम भव हरणु । सब अहल अवय कहि ठकुरसी तुडु समरय तारण तरणु ||२|| , ॥ इति ऋषभदेव स्तवन समाप्तः ॥

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