Book Title: Kavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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कविवर ठक्कुरसी
२८६
पार्श्वनाथ जयमाला
दाकण नयणारुणु नमविहरे, जिह गय घड भय भग। तह जिण गुण मरिण सुमरंतियहि, थिरूण पाहि उपसंगह। महा दिङ्ग दंत सपाणि पयंडू, चहू दिसि घालीय सूडा उंडु । नलग्गइ हथिगरु ता जासु, परंतह वित्ति चिता । पातु ॥१॥
रावणु देहु सु सह. करालु, दुरा रुण गेत जिसहि विझालु । सुस्याल समौ हरि होइन कासु, परंतह बित्ति चिप्तामणि पासु ।।२।। असु ठियज्माल समीर सहाय, चहू दिसि लग्ग न भगत बाय । न दुवकह नीडा सो जिहु वासु, धरंतह चित्ति चितामणि पासु ।।३॥ करेण छियो जसु जाइन अंगु, भरि विसि लच्छरि किण्ह मुगु । न लग्गा चूरि उसो जिदु रासु, परंतह चिसि चितामणि पासु ।।५।। तरंग सुमुठिय नीरि प्रमाह, भरिउ जल जति न लभह पाह ।। सुहोइ समूदु जिसउ थल वासु, घरंतह चित्ति चितामणि पासु ॥५॥ जिसण्णिय लेस मसिय सिरवाहि, भगंदर सूल जलोदर बाहि । तिरणासहि कोढ पमूह खय स्वास. घरंतह चित्ति चिंतामणि पासू ।।६।। कुसौण जिकु ग्रह कूर कुशेष, कुमित्त कुसज्जन कुप्रभ सेव । करति न ते भय दुख पमासु, धरंतह चित्ति पितामणि पासु ॥७॥ कही चिरू कम्मि किये अरि घधि, भरिउ तनु संकलि धल्लि निरपि । तहत गयो प्ररि करिवि निरासु. थरंतह चिसि चिंतामणि पासु ॥८॥ महा ठग घोर जि हाएणि दुद्र, दिनाइय कम्मरण मत मसुठ । नलगहि लील गमे दिन पासु, परंतह चित्ति बितामणि पासु ॥ लिया सुव बंधव सज्जन इट्ट, उपज्जीह चित्त, रम जिह दिट्ट ! मणं छिय सम्बइ पूरहि पासु, घरंतह चित्ति चित्तामणि पासु ॥१०॥
घत्ता इय घर बइमाला पास जिण गुण विसाला । पहहि जि णर परी, तिण्णि संझा विचारि । कहहि करि प्रनंदो, ठकुरसी पेल्ह नंदो। लहहि ति सुखसारं, वछियं बहु पयारं ॥११॥
॥ इति पाश्वनाथ जयमाला समाप्तः ।।

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