Book Title: Kavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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कविवर ठक्कुरसी
२६५ एम जंगवि करिवि धूय पूज, मल्लिदास पंडिय पमुह । सईहथा सामी उचायत, तुछ मूरति उची न सितु । हो जाणि सुर गिरि सवायज, इरिश विधि परतिउ वारतिहु । पूरिबि हरी भरांति जयवंतज, जगि पास तुहु जेण करी सुख सांति ।।२४।।
तासु पर तेजि के गर भवनी भग्गा दिड रहा । हुधा सुखी से परा यार्स। जो भग्ग मंति करि । दुखि पाया अरु पड्या सांस । प्रवरइ परत्या चहु इसा । प्रभु पूरिवा समथु । प्रजउन जिसु पतिपाइ मनु । सो नर निगुरण निरषु ॥२५॥
इव जि सेवहि कुगुरु कुदेव, क तिथ जि मम करहि । ३वहि जि क पाखंडु मंडहि, धगष्ट धम्मु पावहि न ते । मुनिष अम्मु लउ ति मंडहि, सेवहि जिन चपावती । परत्या पूरण पासु, हरत परत जिउ हुइ सफलु छिन पुरइ ग्रास ॥२६॥
घेल्ह णंदणु ठकुरसी नाम: जिर पान पंकय भसलु तेण । पास युय किय सची जधि । पंदरासय अद्भुतरइ । माह मासि सिय परब दुजवि। . पाहहि गुणहि जे नारि नर । तहि मन पूरइ भास। इय जाणं विण नित्त तुहु । पढि पंडित मल्लिदास ।।२७।।
॥ इति श्री पाश्वनाथ सकन सत्तावीसी समाता ।।
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