Book Title: Kavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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कविवर वृचराज एवं उनके समकालीन कवि
तासु जिगर तणउ पडि विषु ।
ग्रहघात पाल। णमइ ।
ins कल कल कालि चिषि ।
ता ता पतिसय सहितु । परत्या पुरण हि समर्थावि । पाणि जु मुति चंपावती ।
कृन वणि अ
तासु परत्यो हउ कहीं । जो मह मह दिट्ठ ॥२०१
जबहि लिद्ध राणि संग्राम, रणथंभुवि दुरंग गढ़ | जय दत्राहिम साहि कोपिङ, बलु बोलो मोकलिउ । वोलु कौलु सषु तेसा लोविन, जब लग उज्झलि हाइमि मे मूहु भय वज्जि विणू चंपाबसी देस सहि गया दह दिसि भनि ।। २१ ।
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तिवहि कंपिउ सयल पुरु लोउ । कोहन कसु बरजिउ रहह । भज्जि दहइ विसि जाए लगउ । मिलिदि करी तब बीमती । पासलाइ सामी सु धनउ । सबरणा जोतिग बेवलो । चित्तु न मंडई भास । कालि पंचमी पास प्रभ । जगि तुव तणउ विसासु ॥२२॥
तेरा तुहु सिउ कहहि जगनाथ । निसुरिण सिद्धि सुंदरि रखा । इहि निर्मित कर किस कारण । भूत भविषित जारण बुद्ध । तहु समथु जगि तर उच्चावता उपय ।
हारगु ।
हि भव देखहि गाह्रौं ।
अरिन देखहि पास प्रभ
होइ
कि
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