Book Title: Kavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 302
________________ कविवर ठक्कुरसी २८७ यह भइ प्रकिति पुर्यो भवण परति वासु पायो नरह। सलहिये सुनरु कहि ठकुरसी जो परतीय रह रहइ १८) सप्त व्यसन जुवा विसन वनवासि भमिय पंडव नरवइ नलु । मंसि गयो वगराउ सुराखो यो जादम कुलु । वेसा वणियर चारिदत्त पारघि सर्वमुनिज । मोरी गउ सिउभूति वियु परती संकाहिउ । इफेक विसनि कहिं ठकुरसी नरह नीचु नरु दुइ सहइ । अहि अंगि अधिक माह बिसन ताह वली को फह ॥ ॥ इति सप्त विसन छपद ठकुरसी कृत समाप्तं ।।

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