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कविवर ठक्कुरसी
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यह भइ प्रकिति पुर्यो भवण परति वासु पायो नरह। सलहिये सुनरु कहि ठकुरसी जो परतीय रह रहइ १८)
सप्त व्यसन
जुवा विसन वनवासि भमिय पंडव नरवइ नलु । मंसि गयो वगराउ सुराखो यो जादम कुलु । वेसा वणियर चारिदत्त पारघि सर्वमुनिज । मोरी गउ सिउभूति वियु परती संकाहिउ । इफेक विसनि कहिं ठकुरसी नरह नीचु नरु दुइ सहइ । अहि अंगि अधिक माह बिसन ताह वली को फह
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॥ इति सप्त विसन छपद ठकुरसी कृत समाप्तं ।।