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________________ २८ कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि व्यसन प्रबन्ध जुवा फेरा फल प्रगट घरं, खिप होहि भिखारी पनी नरं । जिन खेलहु मूरिख हाणि कणी, किन सुरणीय कया पंडवह तणी। सुरिण सीख सयाणी मूढ मनं, तजि विस्न बुरा देहि दुख घर्ण ॥१॥ रसणा रसु स्वादु न राखि सके. पलु प्रासै मूढ़ न परतु तक। वगरीव तणी परि नरय मते, सहि से दुखु तव चेतिसी विते । सुणि सीख सयासी मूढ मनं, तजि विस्न बुरा देहि दुख घणं ॥२॥ जहि पीये भाट अनर्थ कर, जननी मष्ठिला न विचार फर । तहि मजिन पिये भरणु कवणु सुखो, जहि जादव वंसह दिया दुखो। सुरिग सीख सयापी मूढ मनं, तजि विस्त बुरा देहि दुख घणं ॥३॥ विहि वेसा सिरजी नरय घर, घण जोवन कीरति हाणि करं । बहि संग कियो वणि चारुदत्तो, रालियउगरो हद सेज सुते । सुणि सखि सयाणी मूढ मनं तजि, विस्न बुरा देहि दुख घणं ।। ४१५ जोवनि मदि मूरिख जाहि बन, पसु पारिघि मारहि मूह मनं । चकवइ सुवंभर तणीय परे, दुर्गति दुख देखहि मूढ मरे ॥ सुणि० ।।५।। सर रोहण सूली वध धणं, तहि चोरी किये कवण गुणं । प्रभ परयण पुरजण होइ रिपो, किन प्रगट सुण्यो सिवमूति विपो ।। सुणि० ।।६।। इह परतिय परत विणासु करै, इह रत सयल गुरिए दूरि हरै। परहरह जको सुणि रावण कथा, सो लहइ सरत्र सुख विणु अनिथा ।सृणिः ॥७॥ सुणि धर्मचन्द उपदेसु ल ह्यो, कवि ठाकुर विस्न प्रबंध कह्यो । परहरा जको ए जारिग गुरणं, सो लहइ सरव सुख बंछित घणं । सुणि सोख सारणी मूठ मनं, तजि विस्न बुरा देहि दुख घणं ।।८।। ॥ इति व्यसन प्रबन्ध समाप्तः ।।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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