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कविवर ठक्कुरसी
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पत्ता-जो पढह पढावाइ रिणयमणि भावई लेहाद विसईकरि लिहिये । तसु वय की यह फलु होइ विरिणम्मलु राम सुगरण गोयमु कहिये । वस्तुबंध-जेण सुदरि विगवा वयणरण कराविय एह कह ।
मेहमालवम विहि रवपिणाम पुए पुधि यह लिहावि करि । पयउ कज्जि पंडियह दिम्णिय मल्लाणंदु स महियलह सेवउ सेवज गुगह यहीरु ।
नंदउ तब लगु जउलइ, कहा मंगनदि नीरु ।।११।। ६. शील गीत
यह एक छोटा-सा गीत है जिसमें ब्रह्मचर्य की महिमा बतलायी गयी है । प्रारम्भ में कुछ उदाहरण दिये गये हैं जिनमें विश्वामित्र एवं पाराशर ऋषियों के नाम विशेष रूप से मिमाये गये हैं जो ब्रह्मचर्य के परिपालन में खरे नहीं उतर सके । मन्त में इन्द्रियों पर विजय पाने पर जोर दिया गया है। मीत का दूसरा एवं मन्तिम पच निम्न प्रकार है
सिंधु वसई गा मा मंस साहरि सोम: वार एक वरस में करह सिंघरणी सरि सुरति । पेषि परे वो पापु आसु मन मुइइ न मासुर । खाद्य संड पाषाण काम सेवा निसि वासर । भोय रिण बसेबु नहु ठकुरसी इहु विकार सब मन तणौ । सील रहि ते स्पंघ नर नहि यति पारापति सिरणी ॥२॥
१०. पार्श्वनाथ स्तवन
प्रस्तुत स्तवन पं० मरिसदास के प्राह पर निबद्ध किया गया था। इसमें पंपावती (चाकसू) के पार्श्वनाथ प्रभु की स्तुति की गयी है। पूरा स्तवन १५ पद्यों में पूर्ण होता है। स्तवन प्रभावक ऐवं सुरुचिपूर्ण है। इसका अन्तिम छन्द निम्न प्रकार है
पास तणं सुपसाइ, पार पणमंति प्राइ परि । पास तरी सुपसाई थाइ, पक्कवइ रिद्धि धरि । पास तणं सुपसाइ सग सिष सुख सहि । पास तासु पणमंसि अंगि प्रालस कुन किंजे । ठकुरसी कई मलिदास सुरिण हमि इहु पायो भेः इव । बगि जं जं संदरु संपर्ज, तं तं पास पसाउ सव ॥१२॥