Book Title: Kavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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कविवर ठक्कुरसी
के मै बोलो झूठ अवर दिछु दया न पाली । के में भोजन कियौ पति पत संधाए । स्वामी पुष आयु प्रायो उद, कृपण कंत पायो पड्यौ । तो दिन पाषु रिचण सुहै, अणही मिसि पावै लड्यो ।।१०।। इणीइ रीतिरहि कृपरिण धुति धणु घणी उपायो । ले सुणि पास वार गाडि पूर वाहरि मायो । क्यो कलतरि आपिया ताह के भेदे न मक्ख । क्योरि कर भरसाल स्योर नख मुनिषुन लो । परिवार पूत बंध जणह नीष कुनहु पतियइ कसु । यों सुमि सदा इन एकठो करि करि राख्यो भाप वसु ॥११॥ दुख मरती देहुरे तासु तिय जाइ सवारी । एकहि विणि गुन्जो संगालो गिगार रयण मम करि जोति कहिउ पिय सरिसु हसंती । सुगहि स्वामि महु एक सणी वीसी । नर नारि सबै कोक भरचा लीया परोहण घर जु धरि । बंदिस्यौ जाइ श्री नेमि मरु दडि सेरोतंबसिरि ॥१२॥
तती करि पिय मती घडहि दुवे गिरनारीय । बंदह नेमि जिरणंदु जेरिण तिय तजिय कुमारीय । दीप धूप फल लेइ पस मक्खत केशर | कुल गयंदी पहाइ पाइ पूजा परमेसर । अरु चड़हं दुबें सेतंजसिरि जनम जनम को नाइ मलु । सपजानजी पसु नर नरकि बहि अमर पदु परम फलु ।।१३।। नारि वचन सुरिण कृपरिण सीसि सलवटि घणपल्ली । कि तू हुई धण बावली कि पण पारी मति पल्ली । मैं घणु लद न पडो मेर घरम् लियो न पोरी । मै घणु राजु कमाइ भायु पाणियो ना जोरी । दिनि राति नौंद हिस भूख सहि मैर उपायो दुखि घरणों । खरचि वा तमो बाहुडि वचनु पण मू मागे मत भो ॥१४॥ कहै मारि सुणी कंत घपल विष्णु लज्यो लाछी भयो । नहु नव निद्धि मूकि तसु गैलरण लछी ।

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