Book Title: Kavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 292
________________ कविवर ठक्कुरसी कृपण कहै रे कृपणु आजि तू दूपण दिवो । कि तु रावलि गयो केम घर चोर पट्टो । पाइयज कि को घरि पाहुणो कीयो नर भोजन सरसि । किरिण काजि मीतरे माजि तुव मुख घिलोणु दीठो विसि ॥२०॥ कृपर कई रे मंत मुझ घरि नारि सताये । जाति चालि घर खरधि है सो मोहिण भाव । तिह कारणि दुव्वली रयण दिण भूखण लगइ । मंतु मरण माइयो प्रह्म प्रख्यो तू प्रागै । ता कृपण कहै रे कृपण सुणि मीत मरण न माहि दुखु । पीहरि पया पासो र भोलिद और गुरु २१ कृपण वचन सुणि कृपण हरिषु हीयो प्रति कीयो । पुरिष ले एक सस्त्रि लेखु झुठो लिखि दीयो । तिय आगे वाची छे तुझ जो जेठो भाइ । बुहि परि जायो पूय तु धरि धण कोकी बाई । तुटिमी प्रीति जै ना चलि सिसू नवो सुरण वापसी । जारपती पिउ परपंच घण पली नदि जासापहि ॥२२॥ तित संगु सामसौ साथि लीयो भड भारी। हय गय रह पालिका चरिवि चल्ली नरनारी । जंत जंत गिरनेर पह राजलु वर बंद्यो । साइ पत्रुण चडेवि पुष्य कृत्त पाप निकंछौ । पर दिट्ठ जीइ सेतसिरु गनह राख्यो कवरण वरण । मनुष जनम को फल लीयो फिरि फिरि बंद्या जिव भवए 11२३॥ ठाह ठाई ज्योणार कीय व्यापार महोच्छा । काइ ठाइ संग पूल दिठ चित्त किया णवेच्छा । ठाइ ठाइ मंगिणाई दाणू मुजसु उपापी । बाजत ढोल निशाण संग कुसलहं धरि प्रायो । इकु पुण्य उपायो पूरिस्पो ल्याया लोग असंख धनु । पा वात सुरण ज्यौ क्रिपरणु त्यो ते तसु पश्चिताइ मनु ।॥२४॥

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