Book Title: Kavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 298
________________ कविवर ठक्कुरसी २३ बिकि दीसहि नर निकाम । उपाइ न सनेमा पठ्या पर घर माह मेरे लिय घाम । परि नारीथ नेह विराम । अधिक करुय साम । नंदण निगुण भरिहहि निरनाम । जाकी कहीय न रहै माम । फिर पीली माम गाम । रोक जिसा रोग पून्या दीस देह शाम | तिह कोयत सही कुकामु । सकिउ न लेह नामु । चम्पावती पास भय सब सुख थामु । जगत प्रधार मणोपहारी। जि ध्यावहिं पासु सुचारु पारी । ति पावहि मानव सुख सारी ।। मनंत लछी गुणवंत नारि ॥८॥ जाक दीस गुणवंत नारि । रूपवंत सीलपारी। मंदरण नुपुणनी काजिसत मुरारी । जाक ह्य गय भहवारि । अन्न धन्न पूरी खारि। कीरति सुजसु जाके जाच्यो खण्ड पारि । जाक कहीयन प्राव हारि। पावै सुख भव पारि ।। दहन दुखी होइ जाकी रोग भारि । तिरिग ध्यायो सही संसारि । मनह जाणे विचारि। चंपावती पासु जगु मा अधारि । पंसाउ पास प्रम मे लहंति । कुसणु कुग्रह तसु कि करति । हवंति जीवा खलु ने नेहवंत । जलं पलं पग्नि सहाइ संत ॥१०॥

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