Book Title: Kavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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२८२
कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि
डामर्दहाथ स्तवन
नुप मससेगह पुत्तो गुण जुत्तो प्रसुर कमठ मउ मसणो । वम्भादेउरि रहणो, वयणो भविरुख भयजस्म ॥१॥ फणि मंडियउ सीसो, ईसो तिल्लोक सोक दुख दुलखो। तन तेय घेण निजित, कोटी खर किरण मह दीप्ति ||२|| जसु सुरपति दासो, चित संसार वासो । सयल समे भासो, सत्त तच्चापपासो । किय मयरण विणासो, टु कमट्ठ नासो । जयउ सुपरपासो पत्त सासें निवासो ।।३।। गुणाण सख्वाण धरं निवास, न ध्यावहि जे नर पाय पास। कहत ये पुज्जे ताइ पास, करंति जे मिछ पहे विसास ॥४॥
जि कि करहि मूढ विज्ञासू । सुर्ण जाइ भोपाभास । खणाति खान जीवा करे हि विरणासु । जिकि कु गुर कुतिय वास । सेवं जाइ जेम दास । चंडी मुडी खेतपाल ध्यावे हि हयास । जि कि पत्तर मनावं मास । ग्रह गति बूझे कास । अवरह मिथ्यात पथ करहि सहास । ताको कहा थे पूजैइ मास । न ध्यावं ले प्रभ पास। चंपावती घानि सम गुणह निवास ॥५॥
सुखसिधामं प्रभ पास नाम । न सिंत जे वंखित सुख राम । तिदुखवंता ससि सूर गाम । मसुदरं गेह नरं निकाम ॥६॥

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