Book Title: Kavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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कविवर ठक्कुरसी
२७३
कृपण छन्द
क्रिपघु एकु परसिद्ध नयर निसर्वति विलक्षण । कहो करम संजोग तासु धरि नारि विपक्षण । देखि देखि दुई की जोडि सवु जगु रहित तमासै । यहर पुरिष के याह दई फिम देइम मासे । व, र ति घी मतीमान पुन सुस्त ग्रील गति: षा देन खारण सरच कि, दुवं करहि दिनि कलहु प्रप्ति ।।१।।
गुरस्यो गोठि न कर, देउ देहुगे न देखें । मागिन भूलि न देई, गाखि सुरिण रहै भलेखे । संगी भतीजी भुवा बहिण भाणिज्या न ज्याबइ । रहे रुसणो मारि पापु न्यौती जिव पावै । पाहुणो सगो पायो सुरणो रहइ छिपिउ मुख म राखि करि । जिब जातिवह परि नीसर, वो घणु संच्यो क्रिपण तर ।।२।।
सूह परया संथरे, सोवै सलि तिणा बिछाये । सब घीषादवि काहि मोलि धरि तवं न ल्याव । ऊपरि जूडा छनि वर दश तणि जु वाधी । टूटि टूटि तिणि पहा बालि बाजे जब मांधी । सहि ढही भीति सेरी पड़ी देखि देखि देइ पालि नर । मारिज वर मीती बर्ड, तब न छावै कुपए घर ।।३।।
सगला पहिला उठो माथि ते देइक भाइ । पगि नागो सिरि मार गाव दश फिर दिनाई । धरि भूखो परिवार बार तसु टग टग पाहै। जब पावै पापीयो नाजु तब प्रायु विशाह । लेइ सदा सोषि औगस्यो जहि मरघा हा विपति । ईम हा राति कूचरू क्रिपरणु सह को जाण नरु नृपति ।।४।। झूठ कपन नित साइ लेख लेखो नित झूठी। झठ सदा सह करै भूठ नहु होह पपूठौ ।

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