Book Title: Kavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 274
________________ कबिवर ठक्कुरसी २५९ दूसरा व्यसन है मांस खाना । जीभ के स्वाद के लिए जोड़ों की हत्या करना एवं करवाना दोनों ही महा पाप के कारण है। मांस में अनन्तामन्त जीवों की प्रतिक्षण उत्पत्ति होती रहती है इसलिए मांस खाना सर्वथा वर्जनीय है। मद्य पान तीसरा व्यसन है । मद्य पान से मनुष्य के गुण स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं। शराब के नशे में वह अपनी मां को भी स्त्री समझ लेता है । मद्य पान से वह दुःखों की भी सुर मान बैठता है। यादवों की द्वारिका मद्य पान से ही जल गयो थी । यह व्यसन कलह का मूल है तथा छत्र पौर धन दोनों को ही हान पहुंचाने वाला है एवं बुद्धि का विनाशक है। वर्तमान में मद्य पान के विरुद्ध जिस वातावरण की कल्पना की जा रही है, जैन धर्म प्रारम्भ से ही मद्य पान का विरोधी रहा है। मज्ज पिये गुण गसहि जीव जोग ज्याख्यो भणि । मज्जु पिये सम सरिस माइ महिला मण्यहि मणि । मग्न पिये वहु दुखु सुखु सुणहा मैथुन ६८ । मज्ज पिये जा जादव नरिद सकुंटब विगय खिव । भरण धम्म हारिण नर यह गमणु कलह मूल प्रवजस उतपत्ति । हारति जनमु हेला मगध मज्ज पिये जे विकलमति ।।३।। बेण्या गमन चतुर्थ व्यसन है जो प्रत्येक मानव के लिए रजनीय है। यह म्यसन धन, संपत्ति, प्रतिष्ठा एवं स्वास्थ्य सबको नष्ट करने वाला है । सेठ चाहदत की बर्बादी वेश्यागमन के कारण ही हुई थी। कालिदास जैसे महाकवि को वेश्यागमन के कारण मृत्यु का शिकार होना पड़ा था। इसलिए वेश्यागमन पूर्णत: मर्जनीय है। इसी तरह शिकार खेलना, चोरी करना एवं पर-स्त्री गमन करना वजनीय है तथा इन तीनों को व्यसनों में गिनाया है। ये तीनों ही व्यसन मनुष्य के विनाश के कारण हैं । शिकार खेलना महा पाप है। जिस कार्य में दूसरे की जान जाती हो पह कितना बड़ा पाप है इसे सभी जानते हैं। किसी के मनोविनोद के लिए अथवा जीभ की लालसा को शान्त करने के लिए दूसरे जीव का घात करना कितना निन्दनीय है। इन तीनों ही म्यसनों से कुल की कीति नष्ट हो जाती है और केवल अपयश ही हाय लगता है। रावण जैसे महाबली को सीता को चुराकर ले जाने के कारण कितना अपयश हाथ लगा जिसकी कोई समानता नहीं है । इसलिए ये तीनों ध्यसन ही निन्दनीय है वर्जमीय है एव पनेकों कष्टों का कारण है।

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