________________
कविवर ठक्कुरसी
८. मेघमाला कहा
मेघमाला कहा की एक मात्र पाण्डुलिपि भट्टारकीय शास्त्र भण्डार मजमेर के एक गुटके में संग्रहीत है। इसकी उपलब्धि का श्रेय पं० परमानन्द जी शास्त्री देहली को है ।
२५५
मेवमाला यत करने का उस समय चम्पावती में बहुत प्रचार था । ठकुरसी ने अपने मित्र मल्लिदास हाथुष साहू नामक श्रेष्ठि के आग्रह एवं म० प्रभाचन्द्र के उपदेश से इस कहा की अपभ्रंश में रचना की थी। उस समय चम्पावती नगरी खण्डेलवाल दि० जैन समाज का केन्द्र घो तथा श्रजमेरा, पहाडिया, बाकलीवाल आदि गोत्रों के श्रावकों का प्रमुख रूप से निवास था। सभी धावकों में जंनाचार के प्रतिमास्या थी । कवि ने उस समय के कितने ही धावकों के नाम गिनाये हैं जिनमें जीरा, सोल्हा, पारस, नेमिदास, नाथूसि, मुल्लरण आदि के नाम उल्लेखनीय है । कवि दोषा पंडित का और नाम गिनाया है ।
मेघमाला व्रत भाद्रपद मास की प्रथम प्रतिपदा से प्रारम्भ होता है। इस दिन उपवास एवं दिन भर पूजत करती चाहिए। यह व्रत पांच वर्ष तक किया जाता है | इसके पश्चात् व्रत का उद्यापन करना चाहिए। यदि उद्यापन न कर सके तो इतने ही वर्ष व्रत का और पालन करना चाहिए ।
आदि भाग
मेघमाला कहा की समाप्ति सावन शुक्ला ६ मंगलवार संवत १५५० के शुभ दिन हुई थी। पूरी कहा में ११५ कड़वक तथा २११ पद्म हैं। रचना अपन भाषा में निबद्ध है ।
मेघमाला कहा का आदि एवं अन्त भाग निम्न प्रकार है
म चरिम जिरिंग विदय कं वि सुव सिद्धत्य विसिद्धयरो | कह कहमि रसाला वयघणमाला पर शिशा करिकथि || दिपक बुढाहड देस मज्झि, गयरी चंपावइ श्ररित्र सत्थि । सहि प्रस्थि पास जिणवरणिकेठ, जो भग कहि ताररपहसेउ । तसु मक्कि महाससि वर मुखीसु, सह संठिउ गं गोयमु मुलीसु । तह पुरउ गिट्टिय लोग सव्व, मिसुरांत षम्मु मणि गलिय- गब्ब । तह महिलदास वरिंग तर रुहेण सेव सुबत्त बिषयं सहेल । भो बेल्हाद ! सुरिण ठकुरसीह, कद्द कुलह मक्झि तुह लहरण लीह ।