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कविवर ठक्कुरसी
भक्ति कालीन कवियों में कविवर ठक्कुरसी का नाम उल्लेखनीय है । उनकी पन्द्रिय वेलि एवं कृपण छन्द बहु चर्चित कृतियां रही है। इनका परिचय प्रायः सभी विद्वानों ने अपने ग्रन्थों में देने का प्रयास किया है। लेकिन फिर भी जो स्थान इन्हें हिन्दी साहित्य के इतिहास में मिलना चाहिए था वह अभी तक नहीं मिल का है । इसके कई कारण हो सकते हैं सर्वप्रथ "जन हिन्दी साहित्य के इतिहास" में इनकी एक कृति कृपण चरित्र का परिचय दिया था । इसके पश्चात् डा० कामता प्रसाद जैन ने "हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास" नामक पुस्तक में कवि की कृपण चरित्र के अतिरिक्त पञ्चेन्द्रिय वेलि का भी परिचय उपलब्ध कराया था ।
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सन् १९४७ से ही राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की ग्रन्थ सूचियों का कार्य प्रारम्भ होने से गुटकों से अन्य कवियों के साथ-साथ ठक्कुरसी की रचनाओं की भी उपलब्धि होने लगी और प्रथम भाग से लेकर पञ्चम भाग तक इसकी कृतियों का नामोल्लेख होता रहा इससे विद्वानों को कवि की रचनाओों का नामोहलेख हो नहीं किन्तु परिचय भी प्राप्त होता रहा। पं० परमानन्द जी शास्त्री बेहली का पहिले अनेकान्त में और फिर "तीर्थंकर महावीर स्मृति ग्रन्थ " में कवि पर एक विस्तृत लेख प्रकाशित हुआ है जिसमें उसकी ७ रचनाओं का विस्तृत परिचय भी दिया गया है। इससे कवि की भोर विद्वानों का ध्यान विशेष रूप से जाने लगा । इसी तरह और भी जैन विद्वान कवि के सम्बन्ध में लिखते रहे हैं। इतिहास में स्थान देने वालों में डा० प्रेमसागर जैन का नाम उल्लेखनीय है जिन्होंने 'हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि' में कषि के सम्बन्ध में सामान्य रूप से मूल्यांकन प्रस्तुत किया है ।
जैन विद्वानों के प्रतिरिक्त जनेतर विद्वानों में डा० शिवप्रसाद सिंह का नाम उल्लेखनीय है जिन्होंने "सूर पूर्व ब्रज भाषा और उसका साहित्य" में कवि की तीन