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कविवर बूचराज एवं उनके समकालोन कवि
पीछे विवाद को लेकर अन्य घटनाएं घटती हैं। नेमिकुमार जल क्रीड़ा करके सरोवर से निकलते हैं और गीले कपड़े निचोड़ने के लिए रुक्मिणी से प्रार्थना करते हैं। लेकिन रुक्मिणी तो उनके बड़े भाई नारायण श्रीकृष्ण की पत्नी थी इसलिए वह कसे कपड़े निचोड़ती। उसने इतना कह दिया कि जो सारंग धनुष का देगा, पाञ्चजन्य शंख पूर देगा तथा नाग पोय्या पर चढ़ जावेगा, उसी के रुक्मिणी कपड़े धो सकती है । रुक्मिणी का इतना कहना था कि नेमिकुमार चल दिये अपना पौरुष दिखलाने प्रायुध शाला में। वहां जाकर पल भर में उन्होंने तीनों ही का? कर डाले । शंख पूरते ही यादवों में खलबली मच गई और स्वयं नारायण यहां पर पहचे । नेमिनाथ का बल एवं पौरुष देखकर सभी प्राश्चर्य चकित हो गये । अन्त में नेमिनाम को वैराग्य दिलाने की युक्ति निकाली गयी। विवाह का प्रस्ताब रखा गया । बारात चढी । तोरण द्वार के पास ही अनेक पशुओं को दिखलाया गया । नेमिनाथ के पूछने पर जब उन्हें मालूम चला कि ये सब बरातियों के लिए लाये गये हैं तो उन्हें संसार से विरक्ति हो गयी और तत्काल रथ से उतर कर कंकण तोड़ कर गिरनार पर जा चढे और मुनि दीक्षा घारण कर ली। राजुल के विलाप का क्या कहना । उसने नेमिनाथ को समझाया. प्रार्थना की. रोना रोया मामू बरमाये लेकिन सब व्यर्थ गया । अन्त में राजुल ने भी जनेश्वरी दीक्षा ले ली ।
प्रस्तुत कृति पद्धडिया छन्द के प्राधार पर लिखी गयी है। प्रारम्भ में २ दोहे हैं और फिर कडवक छन्द हैं। इस प्रकार पूरी वेलि में १० दोहे तथा ५ पद्धडिया छन्द हैं। सभी वर्णन रोचक एवं प्रभावोत्पादक हैं । भाषा बज है जिस पर राजस्थानी का प्रभाव है । जब राजुल के समक्ष दूसरे राजकुमार के साथ विवाह करने का प्रस्ताव उपस्थित किया गया तो राजुल ने दृढ़तापूर्वक निम्न शब्दों में विरोध किया
पह रजमतीय प्रणेगा, जिग' विण वर बंषय मेरा ।।११॥ के परउ नेमिया भारी, सस्त्रि के तपु लेउ कुमारी । चदि गवरि को खरि वैसे, तजि सरगि नरगि को पैसे ।।१३।।
तजि तीणि भवन को गई, किम अवरुनु वर्ग बस माई ।। नेमिफुमार की अपूर्व सुन्दरता, कमनीयता एवं रूप पर सभी मुग्ध थे। जब वे बसन्त क्रीड़ा के लिए जाने लगे तो उस समय की सुन्दरता का कवि के शब्दों में थर्णन देखिये
कवि कहइ मुनिथ घण घणु, जसु परणइ एह मदाशु । इणि परितिय प्रणेक्क पयारा, बहु करिहिति काम विकारा । जिणु तष इण दिठि दे चोल, नाउमेह पवन मै डोले ।।५।।