Book Title: Kavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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यशोधर चौपई
२२३
कथा सुघोजिल निसुनहु प्राण, ग्रेरी जो प्रभु मारी बाण । सो मरि देस महिषु भवतरचौ, प्रति प्रचंडु बल दीस भन्यो ।।३५४।। ता परि वणिक कठारी घालि, लादि चसामी मधुरी चालि। आगे सो उजैरिण नदि तीर, बलत पंथ को भई उमोर ।। ३५५१॥ को सहि पनि दि. य. ... न तु इणयो । तब थन वारण कोनी सोरु, पकरथी महिषु घालि गल रोरु ॥३५६।। राजा प्रागै बिइ सेव, हग्यो तुरंग तुमारी देव । सुणि रिसाइ बोल्यौ महिराउ, पाको करहु दुहेलो घाउ ।।३५७।। पाइ बांधित रखऊ मागि, तिम मारह जिम जाइ ण भागि । छेरे सङ्कुलै मारह एह, साद पिता भा जोक देहु ॥३५८।। फोर कारा एह पम तीनि, देक पितर जिम पावहि पाणि । छेरौ महिउ पगिनि सहि मरो, तंब चूल दोऊ भवतरे ।। ३५६।। तहि अवसरि कर लाठी घारू, जस में राय तनो फुटवारु । दोऊ लए मरमपम जाणि, तिणि राजहि दिपराए प्राणि ।। ३६०।। कुकर्कट जुगलु' अनुपम पेषि, गच्यो राप रंग मनु भेषि । बहुत मोहू सुष उपनो दीठि, निज कर तरसी तिनको पीठि ।।३६१॥ कोटवाल पभण सुनि राइ, जूझ पेषि मनु परी सिहाइ । भने राउ तल वर प्रतिरालि, देह कूरु पंजर ले घालि ॥३६२।। नंदन बन मेरै घर तीर, सै चलि तांव चूल वलवीर । गज गामिनि भामिनि मो तनी, ता सह कील कमि वन वनी ।।३६३।। तहि कोतिगु पेमि वन माह. सुफल कसुम तपवर उन छाह । निसुनि बचनु तलवरु सिर गाइ, कुक्कट लवण पहुच्यी जाइ ।। ३६४।।
साटकु अंबनि वकयं व चंदनवन के किलि वल्लीहरं । दरकाणालि लवंन पूग कदली सेवि गुजर कामरं ।। जाती चंपक मालसी व कसुमं अकरादि देर । गायंती झुणि बीए किरज लंप भवणं साणरं ।।३६५।। कोटवालु घनु वनु अवलोइ, मन मोहनु सोहन फिरि सोइ । तहि अवसरि णिव मंदिर पास, जहि असोय तरुवरु घन सा ॥३६६।।

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