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यशोधर चौपाई
साउबए विलुहु जाहो कपि भय किन्तु गत जलयर छैली छागु प्रत्रु महि सुसटु र गलं । संव चूल तनु खंडितहि हम रण
रहो
प
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दो विहि कुक्कुटु· हयो प्रचेतु हिडिउ सात भवंतर सेतु । पुत्र माह दुष देषत फिरे, से हम वीरू बद्दिगि प्रवतरे ||४६१ ||
अव त धोऊ करहि भलेज, मनपरि एकु जिनेस्वर देव । afras भने सकोमल भास, णिसुनि कुमार वयनु भो पास ३४६२१०
ले महातप से ताउ, तू बालक व पिता को पालि पुत्र ण करहि पिता की आए लानु रा भयौं परचंड, हाते राजु करहु दिन चारि राजु सकति करियो कुसुमावली अरजिका भई, बहुत मैं दिन चारि राजु घर करबौ फुनि
महिराज
कुमार कोनो तो निवड़े कुल केरी चालि ||४६३० तो रण काजु सी परवा । पिता वधनु यो वन षंडु ||४६४ || फुनि तपु लीजहू काजु विभारि । जस
नारि सहू दिष्या लई । भाइ हि सो परिहरौ ।।४६६ तेज सुरु वनवास 1
गए सुदत्त सूरि मुनि पास, जो तप
fear करि मागी दीषि, तब सुदत्त गुरु दीणी सोष ||४६७३१
तुम दोक बालक सुकुमाल, कोमल जिसे पऊ के नाल |
पंचम महाव्रत दूमह घरे, ले तुम पास आहि किम घरे ||४६८ ।। ओग त्रिकाल देहि किम बीर, केम पसेसह सहहि सरीर | पाव मास किम सहहिउ पास, लहि कुमार किम सहहि पियास ।।४६६॥ जब लगि दोऊ समरय होऊ, अनुव्रत धरतु कुमर दलि कोहु ।
ससुर बचन सुनि कुमरु कुमारि लीनो तपु ग्राभरण उत्तारि ||४७० ॥
कीऊ लाहू जी मौ मानु, सुष दुष तिणडु मु एक समान । घोषहि श्रागम वारह अंग, निलि दिनु रहहि गुरु के संग || ४७१ || जिनवर वंदन तीरथ थान, संजम रावत पंच पराण । करत विहारकम् सुनि राइ, नयर सुमारी पहुचे भाइ ||४७२ ॥ गुरु उपदेश चले निश्थ, भोजन निर्मित नगर के पंथ । ga फिकर लेते वरी प्राण, महिलाए देवी के प्राण || ४७३ ।।
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