Book Title: Kavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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२२६ कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि
जान्यौ सयलु पाछिलो कियो, तब पछिताइ विसूरघो हियौ । पायो दुसहु महा गुण बोहु, जीव भषण को कियो निरोधु ॥३६४।। प्राई काल-लघि सुभ वरी, भव भय वेलि कटी दुष भरी । तंव चूल पंजर वन माहु, कीनो सव दुसुरुहु रीसाहू ॥३६५शा जस वैराउ रयणि वण गयो, राणि हि सहित सुरतु सुषु लयौ । कोक भाव रमि खरिंग सुजारिण, पंषि सवद सर मारे ताणि ॥३६६।। तंब चूल प्रारति तजि मरे, कुसुमावली गर्म औतरे। पायो धम्, सुगुरु उपदेस, पोतं परी सु किल सुभ लेस ।।३६७।। गुरु भव सायर तारण हारु, भव तरुवर कप्परण कुठारु । कीजहु भन्च सुगुरु को कह्यो, जासु पसाई असिम कुल लयो ॥३६८।। सिसु सारंग नयरिण ससि वयरिण, पिय सोमानि सुरत सुषु रयरिण । कुसुमावली सहित घरणाहु, गनो णरि मन भयो उछाहु ।।३६६ ।। पयड असा पति तग सहि दारु, दिन दिन गएँ जुण पाणु । जिनवर नो वर्ष परणट, पुन दोशनी पर राज !!४!! कुजर चालि सुहाई मंद, पंडरु वयनु सरद जनु चद । घुलहि रणयण जन जागी राति. मोरति अंगु वयण अरसाति ॥४०१।। कररुह भाण घरी जाई, कोमल अंघ जुमलु यहा। चंदन चंदु कुसुम रस वासु, सीयल सेज र वैज्यो तास ॥४०२॥ विरीषंडि पारे अपघाइ, सुन कहानी सखिनु वुलाइ । प्रमुकमेण पूजे दस भास, भयो जु पलु पूरी मन प्रास ॥४७३||
अभयरुचि का जन्म
मंगलु भयो राय को गेह, सुह वेली सीची सुघ मैह । होरण दीण पूरै दै दानु, सुयरण लोग को कोनो मानु ।।४०४।। इकु राजा सुन जनम्यौ आनु, ताको सुपु को कहण समानु। कीनी प्रभो फुटमु रुचि भरघों, ताते नामु प्रभैरचि धरयो ।।४०५|| स्तर प्रभमति कंचन देहा, अति सरूप जनु ससि की रेहा ।। मारिदत्त मुनि कथा पहाणि, दुसह खरी फर्म गति जानि ।।४०६।। वलि जो जाति सवनुत दई, बहू हुती सो माता भई । नंदनु हुतो बसोमति राउ, सो फिरी भयो हमारो ताउ ॥४०७।।

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