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कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि
निधो मुणि दिय घरह पुराण, इनके बचन न सुनियहि कारण । मेरे कूकुर राषे कोलि, अषय करज्यो कणफु सो सील ॥४२१॥ असो वचनु राइ जब भन्यौ, हा हा परिण वनिक सिरु धुन्यो ।
मरखें मूढ राज मद भरे, भूली बात कहहि वावरे ।।४२२।। मुनि के गुणों का वर्णन
मुनिवर सम को पकरु पहाण, याको गुणनि सुणिहि दै कानि । मलिन देह अंतर मल हीनु, तिय ण संगु सिव भामिनि लीनु ।।४२३।। निधनु, परि पनाह न अतु, तीन रयण गही रह्यौ महंतु ।
रोस हीनु परिहन्यो अनंगु, जो रवि पर तम रहैं न अंगु ॥४२४।। षीण सरीर पतुल बल जाणि, को तप तेज कहै परवाणि । वयनु पेषि सुष उपई गात, प्रस गुण कर नरक बनु जात ।।४२५॥ यह कलिग नरवै सुपहानु, या समान राउ न होतउ प्रानु । तसकर कारण छाडिउ राजु, तजि प्रारंभु कियौ सप काजु ।।४२६।। अरु जे ते सावज वणवास, लगते रहहि सदा मुनि पास | ता ऊपर किम घालहि घाउ, किम के काज वढाबहि पाउ ।।४२७।। सुर नर खयर फनीसुर जिते, इणको सेव करहि सब तिती । माया मोहु ण व्याप सोकु, नान नयण सूझ तिर लोक ॥४२८॥ जिन विनु काम बढावहि पापु, पणवाहि चरण छाडि मन दापु ।
वनिवर तनी राव सुनि वात, त्यो परी सकषि करि गात ।।४२९।। रजा द्वारा मुनि भक्ति
मन विचार करि उपसम भाउ, मुनिवर चरण परयो महिउ । रागु रोसु मरु जिन बसि फियो, धर्म वृद्धि भनि मासिषु वियो ।।४३०॥ दुजो घासु पापु षै जाउ, यह मेरी मासिक को भाउ । मुनिवर बन्दनु राउ सुनि काण, तब नरव लाग्यो पछितान ॥४३१।। इण षिनु एक न कीनी रोस, करु उचाइ मो दई भसीस । वा सम महिलि साधु ण मानु, इणि परु जान्यो प्रापु समानु ।।४३२।। मेरो जेम पराछितु जाइ, सीसु काटि ल पर समि पाइ । मुनिवरु भन्यौ निसुनि महिपाल, किम मन चिर्स मरनु अकाल ।।४३३।।