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कविवर बुचराज एवं उनके समकालीन कवि
बालम तुव महवाल ह्उ, तो बिनु एह प्रकछ । के जरि वरि माटी भली, कैर तुमारं स ।। २८७॥ बालम तुम विनु रूवरी, सोता कि जगह जसु वालम विनु क्रिम मामिति किम भामिनि विनुगेछु । दान विहीनौ जैम घर सील बिहीनों देहु ।।२८६।।
चौपई
लहिमलि भारी होइ ।
धीरी घरं या कोइ ||२६||
रानी भर्न जोरि परि मो बचनु एकु प्रभु देह, दियवर भएहि वेद की श्रादि, ताते एहु बचनु प्रतिपालि, फुरिए
हाथ, हो तपु करमि तुमारे साथ । भोजनु करहि हमारे गेह ||२०|| वलि विषानु भोजन वितु वादि । तुम हम तपु लीवौ कालि || २६१ ॥
रानी बनु मोहि प्रभु रह्यो, मानहु मोह निसार गह्यो । जनु पडि ढलना मेले सीस, भूली सर्व पाछिलो रीस ||२२|| रानी चरितु स्यणि जो रयो, भाई मो सुपिनु हो भयो । भरम मुलानो ठगि सो लयो, मांग्यों बचतु नारि कहूं दयी ।। २९३ ॥ रूपरि रवण कथा पिलुरोह में कचनु कर्म की रेह । मानी राइ नारि की वात, भामिनि रोम हुलासी गात || २६४ |
रानी द्वारा जहर के लड्डू बनाना एवं राजा को खिलाना
तब राणी प्रपनं घर गई, बोली सबी रसोइ ई लडू किये बहुत बिसु घालि, कछूकु तं वन दीनो पालि ||२५||
हीन बात किस बरामि और लोपि सोधि करि दोनो ठौर
सहरु चन्द्रमती सु पहारिण, दोक जैव न बैठे प्राण || २६६ ॥
भोजन करत उठी तनु कापि ।
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लाडू भाति परोसे चापि ताकी उपमा दी कौन, जुर जाड़े जहू तृम्यो अंगु नसणी टूटि जीभ लहराण, चन्द्रमती के विकसे प्राण || २६८ : |
भूमि चालु सौ लाग्यो हौन ||२७|| भयो नयन काशनि को मंगु
दुवै करि राजा, अमिय महा दे की ज्यौ डस्यो ।
जौ राजा को जीवन होइ, तो प्रभु मारे मोहि विगो ||२६||